हमारे देश में सदियों पहले कहा गया कि सत्यम वद यानी सत्य बोलो। दुनिया के हर समाज में कहा गया कि सत्य बोलो। इसका यही मतलब निकलता है कि पूरी दुनिया में झूठ बोला जाता था, बोला जाता है और भविष्य में बोला जाता रहेगा। सत्य और झूठ की उत्पत्ति एक साथ हुई। सत्य है, इसका यही मतलब है कि झूठ भी कहीं न कहीं विराजमान है। हमारे पुरखों ने झूठ को भी दो कैटेगरी में बांटा। एक वह झूठ जो हम अपने फायदे के लिए बोलते हैं। हम अपने फायदे के लिए एक झूठ बोलकर सजा से बच सकते हैं, कमाई कर सकते हैं, अपना प्रभाव बढ़ा सकते हैं। दूसरा झूठ है तो झूठ ही, लेकिन वह स्वार्थ नहीं, परमार्थ के लिए बोला जाता है। वह झूठ होते हुए भी सच से बड़ा हो जाता है।
यदि हमारे थोड़ा सा झूठ बोलने से किसी की जान बच जाती है, तो इसमें बुराई क्या है? इस तरह की झूठ आमतौर पर चिकित्सक बोलते हैं। वह जानते हैं कि अमुक मरीज अपनी बीमारी के अंतिम चरण में है, लेकिन फिर भी उसकी पीठ थपथपाते हुए कहते हैं, चिंता मत करो, बहुत जल्दी ठीक हो जाओगे। यह निष्पाप झूठ है। इसके पीछे मरीज को घबराहट से बचाने, उसे जितने दिन बचे हैं, उसको सुखपूर्वक बिता लेने देने की भावना झलकती है। जानलेवा रोग या दूसरे कारणों से मरीज मर तो वैसे भी जाएगा, लेकिन तनिक झूठ बोलने से यदि मरीज मरने के आतंक से मुक्त हो जाता है, वह अपनी पीड़ा भूल जाता है, शांति से मरने के लिए अपने आप को तैयार कर लेता है, तो इससे अच्छी बात और क्या होगी। झूठ के कुछ साइड इफेक्ट भी होते हैं। सबसे ज्यादा प्रभाव छोटे बच्चों पर पड़ता है।
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थोड़ी बहुत समझ रखने वाली उम्र से लेकर 15-16 साल की उम्र वाले बच्चों के आदर्श उनके मां-बाप होते हैं। वे यह मानते हैं कि मां-बाप झूठ नहीं बोलते हैं। यदि इनके सामने किसी तरह का झूठ बोला जाए, तो यह पूरी आशंका होती है कि वह बड़ा होकर झूठ बोलेगा। आमतौर पर यही देखने को मिलता है कि लोग अपने घर पर आए किसी व्यक्ति से मिलना नहीं चाहते हैं, तो अपने बच्चों से कह देते हैं कि बेटा, जाकर बोल देना, पापा या मम्मी घर पर नहीं हैं। मोबाइल फोन आने पर लोग अपने बच्चों से कई तरह के झूठ बुलवाते हैं। यही झूठ बच्चों के चरित्र निर्माण में बाधक बनती है। कई मामलों में तो बच्चों के बड़े होने पर लौटकर मां-बाप के सिर पर आ गिरता है।
बच्चा बात-बात पर अपने परिजनों से झूठ बोलता है। कई बार तो बच्चा यहां तक कह बैठता है कि उसने झूठ बोलना तो आप से ही सीखा है। बच्चों के सामने झूठ बोलना या उनसे झूठ बुलवाना उचित नहीं है। अक्सर जब बच्चा छोटा होता है, तो माएं या घर की औरतें बच्चों को डराते हुए कहती हैं कि हां, बाहर मत जाना, वहां बिल्ली है, उठा ले जाएगी। कुछ दादी, नानी और माएं बच्चों को ऐसी-ऐसी कहानियां सुनाती हैं, जो पूरी तरह गप होती हैं यानी झूठ होती हैं। इन कहानियों का भी उन पर बुरा असर पड़ता है। सच कितना भी कड़वा हो, हर हालात में झूठ से बेहतर ही होता है। अगर परिस्थितियां लाख बुरी हों, बच्चे के सामने सच बोला जाए, तो बच्चा भी बड़ा होकर सच ही बोलेगा। सच बोलिए, मस्त रहिए।
-संजय मग्गू
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