मोबाइल और इंटरनेट ने हमें कितना एकाकी बना दिया है, इसका शायद अभी हमें आभास न हो, लेकिन एक दिन ऐसा जरूर आएगा, जब हम या हमारे वंशज इससे पीछा छुड़ाने को व्याकुल हो जाएंगे। कितनी अजीब बात है कि एक ही कमरे में सारे लोग बैठे हों और आपस में बात करने की जगह मोबाइल पर लगे हुए हों। परेशान पत्नी बड़बड़ा रही है और पति मन का सुकून शार्ट्स, रील्स या पोस्ट में तलाश रहा है। इस आभासी दुनिया ने हमारी भावनाओं को भोथरा बना दिया है। पत्नी, पति, बेटा-बेटी या मां-बाप, भाई-बहन के प्रति अगर ज्यादा प्यार उमड़ा तो चंद शब्द टाइप किया और भेजकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली। हम यह बात भूल गए कि हमें अपने शब्द तो उन तक पहुंचा दिया, लेकिन भाव? जिसे हमने मैसेज भेजा, वह कैसे समझेगा कि हमारे भाव क्या थे?
जब हम किसी अपने को आमने-सामने बैठकर चंद मिनट तक सुनते हैं, उसकी भाव-भंगिमाओं को देखते हैं, तो हमें एहसास होता है कि सामने वाला हमें कितना प्यार करता है? उसके मन में हमारे लिए कितनी चिंता है? एक ही मकान में हैं, एक ही कमरे में बैठे हैं, लेकिन मीलों लंबी दूरी है, एक अजीब किस्म का ‘अबोला’ है। ऐसा तो नहीं कि हमारा मन ही रिक्त हो रहा है? भावना शून्य हो रहा है? शायद। इस आभासी दुनिया ने हमारी भावनाओं, भावों और लगाव को भोथरा कर दिया है। हम भी लगता है कि सिर्फ एक मशीन बनकर रह गए हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि मनुष्य भावना, उद्वेग, क्रोध, दया, ममता जैसी भावनाओं और आवेगों से बहुत ज्यादा दिन तक दूर नहीं रह सकता है। दुनिया का हर इंसान चाहता है कि लोग उस पर ध्यान दें। उसकी बातें सुनें, उस पर प्रतिक्रिया दें। बच्चा पैदा होते ही रोता क्यों है? क्योंकि वह लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहता है।
यह भी पढ़ें : कठोर सजा का प्रावधान किए बिना नहीं रुकेगी मिलावटखोरी
वह जताना चाहता है कि वह आपके परिवार को हिस्सा बनकर वह इस धरती पर आ गया है। उसका यही स्वभाव बताता है कि जो काम मां, बहन, भाई, बाप की प्यार भरी एक थपकी कर सकती है, वह दुनिया की कोई भी सुंदर से सुंदर इमोजी, ह्वाट्सएप मैसेज, रील या शार्ट्स नहीं कर सकती है। आप किसी अपने को तनिक देर गले से लगाकर तो देखिए, कितना सुकून मिलता है, इसका एहसास हो जाएगा।
हमें जो अपनापन, सुकून वास्तविक दुनिया के संबंध दे सकते हैं, वे आभासी दुनिया में कहां मयस्सर हैं। आज बच्चों में क्रोध, उत्तेजना, उद्वेग बढ़ रहा है, वे बात-बात पर उग्र हो रहे हैं, क्यों? उनकी बात ही सुनने वाला कोई नहीं है। प्यार से, दुलार से, डांट-डपटकर सही राह दिखाने वाला नहीं है कोई। वह देखता है कि सब अपनी दुनिया में मस्त हैं। किसी को किसी से मतलब ही नहीं है। यदि ऐसा है, तो सचेत हो जाइए। आप परिवार को समय दीजिए। कुछ उनकी सुनिए, कुछ अपनी सुनाइए। फिर देखिए कितना सुकून मिलता है। आत्मा तक तृप्त हो जाएगी। फिर आपको जरूरत ही नहीं होगी आभासी दुनिया की।
-संजय मग्गू
लेटेस्ट खबरों के लिए क्लिक करें : https://deshrojana.com/