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याददाश्त दुरुस्त रखनी है, तो जोर-जोर से पढ़ो

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आज से दो दशक पहले सरकारी और कुछ निजी स्कूलों में बच्चों की कक्षाओं को याद करें। एक बच्चा ब्लैक बोर्ड के पास खड़ा होकर जोर से चिल्लाता था-दो इक्कम दो, दो दुनी चार। सारे बच्चे जोर से इसी को पूरा जोर लगाकर दोहराते थे। यह लगभग हर सरकारी स्कूलों में देखने को मिलता था। गणित की क्लास में पहाड़े यानी टेबल्स, अंग्रेजी और हिंदी क्लास में पोयम मतलब कविताएं इसी तरीके से रटाई जाती थीं। मदरसों में भी बच्चों बिठाकर जोर-जोर से पढ़ने को कहा जाता है। यहां सारे बच्चे एक लय में पढ़ते हैं और आगे की ओर झुकते हैं और फिर पीछे हो जाते हैं। यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक अपेक्षित लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता है। कुछ स्कूलों में आज भी यह तरीका अपनाया जाता है। कुछ लोगों को टेबल्स, राइम्स, स्पेलिंग्स आदि रटाने का तरीका बाबा आदम जमाने का लगता है।

पिछड़ेपन की निशानी समझते हैं, लेकिन इस बात का क्या किया जाए कि कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की शोर्धकर्ता मैरिएन वुल्फ ने अपने शोध में पाया है कि जोर-जोर से पढ़ने पर याददाश्त सुधरती है। यदि जोर-जोर से पढ़ा जाए, तो पढ़ने और सुनने वाले की मनोदशा सुधर जाती है। यदि परिवार के लोगों के बीच बैठकर कहानी, चुटकुला, कविता या अन्य कोई सामग्री जोर-जोर से पढ़ी जाए, तो सुनने और पढ़ने वाले के बीच आत्मीय संबंधों में सुधार आता है। उनकी घनिष्ठता बढ़ती है और भावनात्मक रूप से एक दूसरे से जुड़ने बहुत सहज हो जाता है। मन ही मन पढ़े गए शब्दों की तुलना में जोर-जोर से पढ़े गए शब्द याद रहने की संभावना तीन गुना ज्यादा है।

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अमेरिका में यह सर्वे तो अब हुआ है, लेकिन हमारे पूर्वज इस बात को बहुत पहले समझ गए थे। यही वजह है कि स्कूल में अध्यापक और घर में मां-बाप बच्चों को जोर-जोर से बोलकर पढ़ने को कहते थे। जोर-जोर से पढ़ना न केवल बच्चों के लिए फायदेमंद है, बल्कि बुजुर्गों के लिए भी बहुत लाभकारी है। जोर-जोर से पढ़ने की आदत से कमजोर होती याददाश्त को मजबूत किया जा सकता है। एल्जाइमर जैसे रोग को मात दी जा सकती है। इसके लिए जरूरी है कि आप थोड़ी-थोड़ी देर पर कुछ भी जोर-जोर से पढ़ें। यदि अकेले ऊब गए हैं, तो परिजनों को बिठाकर उनको कोई कहानी का हिस्सा सुनाएं, कविता सुनाएं या फिर लघुकथा ही सुनाएं।

जोर-जोर से पढ़ने का कोई कायदा कानून नहीं है। आपकी जैसी मर्जी हो, वैसे पढ़ें। बस जोर-जोर से पढ़े जरूर। आप पढ़ते समय आरोह-अवरोह का भी ध्यान रख सकते हैं। अभिनय करते हुए पढ़ सकते हैं। कहने का मतलब यह है कि यदि आप अपनी याददाश्त दुरुस्त रखने के आकांक्षी हैं, तो वही कीजिए जैसा हमारे पुरखों ने बच्चों को पहाड़े, कविताएं और स्पेलिंग्स (वर्तनी, हिज्जे) याद करने को कहा था। लेकिन आज यह कोई जरूरी नहीं है कि शब्दों को ठीक ठीक पढ़ा जाए। बस, यह याद रखना है कि शब्दों का उच्चारण जोर-जोर से कहना है, सही या गलत कोई फर्क नहीं पड़ता है।

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