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हरियाणा में बढ़ा तापमान घटा सकता है गेहूं का उत्पादन

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संजय मग्गू
अगर पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, मौसम में बदलाव आ रहा है, तो इसकी वजह मानव समाज की अवैज्ञानिक गतिविधियां हैं। इंसान ने ही पिछली कई सदियों से जाने-अनजाने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया है। इसका नतीजा आज सबको भुगतना पड़ रहा है। हरियाणा में नवंबर का महीना शुरू हो जाने के बावजूद औसत तापमान कहीं ज्यादा है जिसकी वजह से गेहूं की पैदावार पर बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका पैदा हो गई है। कृषि वैज्ञानिकों ने तो आशंका जाहिर की है कि यदि जल्दी ही तापमान कम नहीं हुआ, तो गेहूं की पैदावार पंद्रह फीसदी कम हो सकती है। इसके चलते समय से पहले बालें निकल आएं, तो कोई ताज्जुब की बात नहीं होगी। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस समय गेहूं की बुआई हो, उस समय दिन का तापमान 20 से 22 डिग्री होना चाहिए। आमतौर पर हर साल 20 से 25 अक्टूबर तक 20-22 या इससे थोड़ा कम डिग्री तापमान हो जाया करता था, लेकिन इस बार रात का तापमान तो घट रहा है, लेकिन दिन का तापमान 32-34 डिग्री या इससे ऊपर जा रहा है। जिसकी वजह से गेहूं की बुआई को लेकर किसानों में चिंता है। हरियाणा में हर साल लगभग 25 लाख हेक्टेयर में गेहूं बोया जाता है। आम तौर पर प्रदेश के किसान 20-22 अक्टूबर से लेकर 25 दिसंबर तक गेहूं की बुआई करते हैं। वैसे गेहूं बोने का सबसे बढ़िया समय नवंबर के महीने को ही माना जाता है। जो गेहूं दिसंबर में बोया जाता है, वह पछैती बुआई के अंतरगत आता है। अक्टूबर में भी बोया गया गेहूं अगैती में गिना जाता है। कई बार ऐसा भी होता है कि किसान किसी कारणवश नवंबर में गेहूं नहीं बो पाता है, तो वह दिसंबर के अंतिम दिनों तक गेहूं बो देता है। समय से पहले हरियाणा में गेहंू बोने वाले किसान वैसे तो सिर्फ चार से पांच प्रतिशत ही होते हैं। पिछले साल भी लगभग तापमान ऐसा ही रहा था जिसकी वजह से सिर्फ दो महीने में ही बालियां आ गई थीं और उत्पादन काफी घट गया था। स्वाभाविक है कि इससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ा था। इस बार भी ऐसी ही आशंका है। वैसे हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि कुछ ऐसी भी गेहूं की किस्में विकसित कर ली गई हैं जो उच्च तापमान पर भी बोई जा सकती हैं और उत्पादन भी प्रभावित नहीं होता है। यह एक अच्छा प्रयास है, लेकिन यह समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। समस्या का समाधान तो यह है कि जलवायु परिवर्तन को किसी भी हालत में जल्दी से जल्दी रोका जाए। मौसम चक्र में आ रहे बदलाव को धीमा किया जाए और फसलों के अनुरूप तापमान को स्थिर करने का प्रयास किया जाए। इसके लिए सबसे जरूरी है कि पर्यावरण को प्रदूषण रहित करके कार्बन उत्सर्जन को कम से कम किया जाए।

संजय मग्गू

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