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सचमुच राहुल गांधी होना कतई आसान नहीं है

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सचमुच राहुल गांधी होना आसान नहीं है। वह भी तब, जब देश और दुनिया का सबसे लोकप्रिय और पसंदीदा प्रधानमंत्री, उनकी पूरी सरकार, राज्यों की भाजपा सरकार और उनकी पूरी पार्टी अपने पूरे दमखम के साथ हमला करती हो और वह बिना अपना मानसिक संतुलन खोए अपने काम में लगा रहता हो। इसमें कोई दो राय नहीं है कि राहुल गांधी में बहुत सारी कमियां हैं। वह अपनी बात पर कई बार बहुत ज्यादा देर तक स्थिर नहीं रह पाते हैं। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह अपनी भावी योजनाओं को आम जनता के सामने रख नहीं पाते हैं, लेकिन जब वह छह साल पहले लोकसभा में पेश अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते हुए भरी संसद में यह कहते हैं कि आपके अंदर मेरे लिए नफरत है।

आपके अंदर मेरे लिए गुस्सा है। आपके लिए मैं पप्पू हूं। आप मुझे अलग-अलग गाली दे सकते हैं। मगर मेरे अंदर आपके खिलाफ इतना सा भी गुस्सा, इतनी सी भी नफरत, इतना सा भी क्रोध नहीं है क्योंकि मैं कांग्रेस हूं, ये सब कांग्रेस हैं। कांग्रेस ने और इस भावना ने इस देश को बनाया है। इतना कहकर जब वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गले लग जाते हैं, तब वह सचमुच पवित्र राजनीति के आकांक्षी प्रतीत होते हैं। यह भी सही है कि उनके विरोधियों को पीएम से गले मिलना पसंद नहीं आया। पीएम मोदी ने भी राहुल के गले मिलने को गले पड़ना बताकर कई अवसरों पर प्रहार किया है। माना कि राहुल गांधी को पीएम मोदी की तरह अपनी ब्रांडिंग करनी नहीं आती है।

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वह हर बात को इवेंट बना देने में सक्षम नहीं हैं, लेकिन जिस अदम्य साहस और बच्चों सी सादगी के साथ पीएम मोदी के सामने खड़ा है, यही लोगों को लुभाता है। भले ही ये लोग उसकी पार्टी को वोट न देते हों। पीएम मोदी के मुकाबले में राहुल गांधी बहुत छोटा ब्रांड है। लोकप्रियता में भी और स्वीकार्यता में भी। लेकिन तमाम कांग्रेसी और विपक्षी पार्टियों के नेताओं में भी सिर्फ राहुल गांधी ही ऐसे नेता हैं जो पीएम के सामने सीना ताने खड़े हैं अपनी तमाम कमियों और नाकामियों के साथ। अगर कांग्रेस देश भर में कहीं दिखाई देती है, तो उसके पीछे राहुल गांधी ही हैं।

पिछले दस बारह सालों में राहुल गांधी की जो छवि गढ़ने की कोशिश की गई, उसमें भाजपा और उसका आईटी सेल कुछ हद तक कामयाब भी हो गया था, लेकिन भारत जोड़ो यात्रा ने तस्वीर ही उलट दी। फिल्ममेकर और लेखिका परोमिता वोहरा ने अपने लेख में लिखा है कि यात्रा के वीडियोज ने एक बिल्कुल भिन्न पौरूष की भावना को जगाया। ये वो प्रचंड अधिकारवादी पुरुष नहीं था जो आपसे उसके सामने झुकने की मांग रखता है। ये एक मर्दानगी थी जिसमें खुलापन था, मुस्कुराहट थी, मधुरता थी, आलिंगन था। विरोधी विचारधारा वाली विश्वहिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय कहते हैं कि इस सर्द मौसम में एक युवक पैदल तीन हजार किमी की दूरी तय कर रहा है, तो वो काबिले तारीफ है।

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