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महात्मा बुद्ध के निजी चिकित्सक थे जीवक

अशोक मिश्र

जीवक को भारत और अन्य कुछ देशों में महान आयुर्वेदाचार्य माना जाता है। जीवक का जन्म ईसा से पांच सौ साल पहले एक गणिका (वेश्या) के यहां हुआ माना जाता है। इन्हें मगध सम्राट बिंबसार के दरबारी ने पाया और पालन पोषण किया था। इन्हें जीवक कौमारभृत्य भी कहा जाता है। इनका वर्णन बौद्ध साहित्य में बहुत हुआ है। बौद्ध साहित्य बताता है कि जीवक को तथागत की चिकित्सा करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ था। यह महात्मा बुद्ध के काफी करीब माने जाते थे। बाद में सम्राट बिंबसार, अजातशत्रु जैसे कई लोगों के वह चिकित्सक बने। जीवक के बारे में बौद्ध और तिब्बती साहित्य में कई तरह की कथाएं हैं। कहा जाता है कि सौलह साल की अवस्था में जीवक चिकित्सक बनने के लिए तक्षशिला आए। उन दिनों आत्रेय पुनर्वसु तक्षशिला के आचार्य थे। जीवक ने पुनर्वसु के सान्निध्य में सात साल तक मन लगाकर पढ़ाई की। वह चिकित्सा शास्त्र में अत्यंत पारंगत हो गए। एक दिन उन्होंने आचार्य आत्रेय पुनर्वसु से पूछा कि मेरी पढ़ाई कब पूरी होगी? आचार्य ने कहा कि तुम तक्षशिला के बाहर जाकर कोई ऐसी वनस्पति खोजकर लाओ जिसका कोई चिकित्सीय गुण न हो। कुछ दिनों बाद लौटकर जीवक ने कहा कि उन्हें ऐसी कोई वनस्पति नहीं मिली। तब आचार्य ने कहा कि जाओ, तुम्हारी शिक्षा पूरी हो गई। तक्षशिला से चलकर जीवक अयोध्या आए। यहां के एक सेठ की पत्नी को पिछले सात साल से सिरदर्द हो रहा था, लेकिन कोई ठीक नहीं कर पाया। जीवक ने सुना तो कहा कि मैं ठीक कर सकता हूं। पहले तो सेठ-सेठानी को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जीवक की चिकित्सा से सेठ की पत्नी को आराम मिल गया। उनक चिकित्सा पद्धति आज भी भारत सहित चीन-जापान और समूचे एशिया में अपनाई जाती है।

अशोक मिश्र

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