अदब और मोहब्बत का गहरा रिश्ता
अदब का ख़्याल मन में आए, मोहब्बत का ख़्याल मन में आए, हिज्र के दर्द की चुभन सुनाई दे, किसी पर एतबार करने की कसक सुनाई दे, तो ज़ुबान पर एक ही नाम आता है। वही नाम है, जो इतने अजीब थे कि खुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं किया। दुबले-पतले शरीर, लंबे बाल, काला चश्मा, और मसलसल ताज़े नशे के बीच जूझते हुए उस शख्सियत का नाम है – जॉन एलिया।
जॉन एलिया का जन्म और शुरुआती ज़िंदगी
जॉन एलीया का जन्म 14 दिसंबर 1931 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में हुआ था। बचपन से ही उर्दू अदब और शायरी के मुरीद रहे, और उन्होंने अपनी ज़िंदगी में शायरी को गहराई से अपनाया। शायरी में उनका अंदाज अनोखा था और शब्दों में गहरी सच्चाई और दर्द छिपा हुआ था।
शायरी में दर्द और मोहब्बत की गहराई
जॉन एलिया की शायरी उनकी ज़िंदगी के दर्द भरे सफर की गवाह थी। कहते हैं कि जिनके बोलने में दर्द ज्यादा होता है, उनके पीछे भी एक गहरी चुभन छुपी होती है। जॉन की शायरी में मोहब्बत और बेवफाई की तड़प दिखाई देती थी, जो हर किसी को अपनी ओर खींचती थी।
जॉन एलीया अपनी शायरी में हमेशा एक ही नाम को पुकारते थे, वह नाम था – फ़रेहा। जॉन अपनी शायरी में अपनी मोहब्बत को कई बार टालते रहे, लेकिन उसे “फ़रेहा” नाम से ही पुकारते रहे। शायद उन्हें कभी किसी से सच्ची मोहब्बत नहीं हुई, लेकिन उनकी कविताएं उन जज़्बातों का बेहतरीन इज़हार थीं।
ख़त और मोहब्बत की नशे में डूबती एक कहानी
फ़रेहा के खून थूकते हुए लिखे गए शायराना ख़तों को पढ़कर जॉन को भीतर से मोहब्बत हो गई। जॉन, जो खुद भी मोहब्बत की तड़प में डूबे थे, उसे पाने के लिए तड़पते रहे। उनके शब्दों में यह दर्द साफ़ महसूस होता था:
“यह मुझे चैन क्यों नहीं पड़ता,
एक ही शख़्स था जहाँ में क्या?”
जॉन की आख़िरी हसरत और मौत
जॉन एलीया की हसरत पूरी हुई, लेकिन वह भी खून थूकते हुए ही इस दुनिया से अलविदा ले गए। उनकी आख़िरी बातें और शायरी हमेशा उनके दर्द और तन्हाई को बयां करती हैं। वह कहते गए:
“अब मैं कोई शख़्स नहीं,
उसका साया सा लगता हूँ।”
शादी और तन्हाई के बीच का सफर
1984 तक जॉन की ज़िंदगी में ज़हीदा हिना से मुलाकात हुई, उनसे शादी हुई और बच्चे भी हुए। लेकिन जॉन एलीया कभी भी तन्हाई से बाहर नहीं निकल पाए। उनका जीवन एक ऐसे अफ़साने की तरह था, जिसमें शायरी, शराब और तन्हाई ने उनकी पहचान बनाई। तलाक के बाद वह फिर से अकेलेपन के गर्त में डूबते गए।
ज़िन्दगी की खुली किताब: जॉन एलिया की मौत
अपने आख़िरी लम्हों में, जॉन एलीया ने जो कुछ भी मांगा था, वही चीज़ उन्हें नसीब हुई। उन्होंने अपनी ज़िंदगी को एक खुली किताब की तरह जीते हुए मौत को गले लगा लिया। वह भी खून थूकते हुए, तन्हा और अकेले, लेकिन अपने दर्द और मोहब्बत के साथ इस दुनिया से अलविदा ले गए।
जॉन एलिया की पुण्यतिथि पर हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनकी शायरी का दर्द, मोहब्बत और तन्हाई हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेगा।