कृष्णदेव राय ने ढोई राजकवि की पालकी
अशोक मिश्र
तेलुगु भाषा में रचा गया अमुक्तमाल्यद साहित्य की निधि मानी जाती है। इसके रचियता राजा कृष्णदेव राय थे। वह साहित्यकारों और विद्वानों का बहुत सम्मान करते थे। विजयनगर के महान राजाओं में गिने जाने वाले कृष्णदेव राय का जन्म 1471 में हुआ था। इन्होंने अपने राज्य में बहुत सारे मंदिरों, मंडपों और महलों का निर्माण कराया था। कहा जाता है कि इनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। हालांकि जब इनका शासनकाल था, तब हमारे देश में यवनों और पुर्तगालियों का देश के पश्चिमी तट पर आगमन हो चुका था। इतिहास बताता है कि बहमनी सुल्तान महमूद शाह को महाराजा कृष्णदेव राय ने बुरी तरह पराजित किया था, लेकिन बाद में उन्होंने उसे उसका राज्य लौटा दिया था। एक बार की बात है। हाथी पर सवार होकर राजा कृष्णदेव राय लोगों का हालचाल जानने को निकले। जब कृष्णदेव राय ऐसा करते थे, तो मार्ग में दोनों तरफ प्रजा आकर खड़ी हो जाती थी। लोग जयजजकार करते थे, जिसे कोई परेशानी होती थी, वह भी उसे बताता था। राजा उसका समाधान करते थे। तो उस दिन रास्ते पर चलते समय उन्होंने देखा कि राजकवि पालकी पर बैठे चले आ रहे हैं। चार लोगों ने उनकी पालकी अपने कंधे पर उठा रखी थी। कृष्णदेव राय हाथी से उतरे और जाकर एक व्यक्ति को हटाकर पालकी अपने कंधे पर रख ली। थोड़ी देर बाद राजकवि को लगा कि कुछ गड़बड़ है, तो उन्होंने पालकी रुकवाई और बाहर आए। उन्होंने राजा को देखा, तो बोले, आप यह क्या कर रहे हैं। कृष्णदेव राय ने कहा कि मैं एक सामान्य राजा हूं। लेकिन आप तो साहित्य के सम्राट हैं। आपके लिखे शब्द युगों तक लोगों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। आपके सहारे मैं भी युगों तक जाना जाता रहूंगा। यह सुनकर राजकवि चुप रह गए।
अशोक मिश्र