अक्सर पर्वतीय समुदायों की मूलभूत सुविधाओं पर समाचार पत्रों में लेख और चर्चाएं होती रहती हैं। लेकिन धरातल पर इसके लिए किस प्रकार कार्य किया जाएगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं होता है। वर्ष 2011 की जनगणना के प्राप्त आंकड़ों के अनुसार राज्य की कुल जनसंख्या 10086292 है। इसमें से 7036954 लोग राज्य के 16793 ग्रामों में अपना जीवन यापन कर रहे हैं। राज्य के 25 प्रतिशत ग्राम वर्तमान समय में भी सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा व दूरसंचार जैसी मूलभूत सुविधाओं से कोसो दूर हैं। इसके कारण गांवों से लोग शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं। राज्य के अल्मोड़ा जनपद स्थित लमगड़ा विकासखंड स्थित ग्राम क्वैटा, जो एक समय 380 परिवारों से भरा हुआ था, वह आज 34 परिवारों में सिमट कर रह गया है। गांव के 34 वर्षीय नन्दन सिंह बताते हैं कि गांव से लोगों के पलायन का मूल कारण मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। कहने को गांव में सड़क तो आ गई हंै, मगर पक्की नहीं है। उसमें डामर का अभाव है। इस सड़क पर गाड़ी चलाना बहुत कठिन है। अधिकतर लोगों को पैदल ही गांव से शहर आना जाना पड़ता है।
लोगों को 6-8 किलोमीटर का सफर पैदल तय करना पड़ता है। सड़कों और यातायात के अभाव के चलते घरों का राशन कंधों पर लेकर जंगल के बीच या फिर खच्चर के माध्यम से लाना पड़ता है। जिसके लिए 300 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। जो एक गरीब परिवार के लिए बहुत मुश्किल है। वहीं जंगलों के बीच से राशन ले जाना स्वयं के जीवन के लिए भी खतरनाक होता है, जहां हमेशा जानवरों के आक्रमण का भय बना रहता है। आजादी के 75 साल बाद भी गांव को मूलभूत समस्याओं के लिए जूझना ही पड़ रहा है।
दूरसंचार क्रांति किसी वरदान से कम साबित नहीं हुई है। जिसकी वजह से आज हर कार्य सुलभ रूप से आॅनलाइन किये जा रहे हैं। डिजिटल इंडिया आज भारत का सबसे बड़ी शक्ति बन गई है, लेकिन उत्तराखंड के कई ग्रामीण इलाके इस क्रांति और सुविधा से वंचित हैं। अल्मोड़ा के कई ग्रामों में आज भी नेटवर्क नहीं आते हैं तो ऐसे में डिजिटल इंडिया का सपना कैसे सच हो पाएगा? वर्तमान समय में सभी कार्य आॅनलाइन किये जा रहे हैं, परंतु पर्वतीय क्षेत्रों में नेटवर्क की इतनी अधिक समस्या है कि सिर्फ बीएसएनएल के सिग्नल कहीं कहीं आते हैं, बाकी नेटवर्कों का यहां कोई पता नहीं है। कोविड के दौरान आॅनलाइन क्लास का सबसे अधिक खामियाजा ग्रामीण समुदाय के बच्चों विशेषकर बालिकाओं को हुआ था।
5जी के दौर में कई ग्रामीण समुदायों के पास फोन तक नहीं है। और हैं भी तो वह साधारण कीपैड वाले जिनमें सही से बात तक संभव नहीं है। लड़के कहीं दूर नेटवर्क एरिया में जाकर आॅनलाइन क्लास कर लेते थे, लेकिन लड़कियों को घर से दूर जाने की इजाजत नहीं थी, जिससे वह क्लास अटेंड नहीं कर सकीं। ऐसे में डिजिटल गांव का सपना किसी चुनौती से कम नहीं है।
राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थल नैनीताल स्थित ओखल काण्डा विकासखंड के गौनियारों गांव के बुजुर्ग पान सिंह का कहना है कि उनके गांव में तीन प्रमुख मुद्दे हैं, जिसकी वजह से गांव विकास के दौर में पिछड़ रहा है। पहला शिक्षा का, क्योंकि गांव में एकमात्र जूनियर हाईस्कूल है। आगे की शिक्षा के लिए बच्चों को शहर जाना पड़ता है। जिनका सामर्थ अपने बच्चों को बाहर भेजने की नहीं, उस परिवार के बच्चों को प्रतिदिन छह किमी पैदल चलकर शिक्षा ग्रहण करने जाना पड़ता है। अक्सर इसकी वजह से लड़कियों की पढ़ाई छूट जाती है। दूसरा सबसे अहम मुद्दा है स्वास्थ्य का है, जिसकी कमर भी पर्वतीय क्षेत्रों में टूटी है। अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा के अभाव कारण बीमारों को शहर जाने पड़ते हैं। ऐसे में किसी गर्भवती महिला अथवा बुजुर्ग को किन कठिनाइयों से गुजरना पड़ता होगा इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है।
आज भी कई ग्रामीण इलाकों में डोलियों पर लिटा कर बीमारों को अस्पताल पहुँचाया जाता है। बारिश के दिनों में फिसलन भरे रास्तों पर किस तरह लोग मरीजों को मुख्य सड़क तक लाते होंगे, यह कल्पना से परे है। वहीं तीसरा अहम मुद्दा रोजगार का है, जिसके चलते गांवों से सबसे अधिक पलायन हो रहा है जिसे रोकना अब मुश्किल प्रतीत हो रहा है क्योंकि पर्वतीय समाज विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर है। जहां रोजगार के अवसर लगभग नगण्य हैं।
ग्राम सुन्दरखाल के 31 वर्षीय युवा ग्राम प्रधान पूरन सिंह बिष्ट कहते हैं कि सरकार अक्सर दावे करती है कि वह अपने पर्वतीय ग्रामीण समुदायों की हर प्रकार से सहायता कर रही है। चाहे वह स्वास्थ्य, शिक्षा, यातायात, रोजगार या अन्य कोई मूलभूत क्यों न हों। लेकिन वास्तविकता धरातल पर जीवन यापन कर रहे समुदायों के दर्द में बयां होता है। प्रश्न यह उठता है कि यदि सुविधाएं उपलब्ध हैं, तो गांव के लोगों को इलाज के लिए शहरों की ओर रुख क्यों करना पड़ता है? रोजगार के लिए पलायन क्यों करना पड़ रहा है? शिक्षा का स्तर ऐसा क्यों है कि लोग बच्चों को पढ़ने के लिए शहर भेज रहे हैं? नेटवर्क के लिए ग्रामीण इतने परेशान क्यों हैं? ट्रांसपोर्ट के अभाव क्यों है? यह सभी सरकारी योजनाओं व दावों पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं।
हालांकि पूरन सिंह यह भी मानते हैं कि एक तरफ जहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है वहीं दूसरी ओर लोग आधुनिक सुख सुविधाओं के लालच में भी गांवों से पलायन कर रहे हैं। वहीं जलवायु परिवर्तन के कारण खेती में आ रहे बदलाव भी पलायन की वजह बनते जा रहे हैं। सरकार की कई योजनाओं का लाभ वर्तमान समय में भी ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है और न ही इन योजनाओं की सम्पूर्ण जानकारी ग्रामीणों को है।
बीना बिष्ट