ग्रीस के एक विद्वान थे लाइकरगस। वह गरीबों, असहायों और दिव्यांगों की सेवा करने के लिए काफी मशहूर थे। जब भी उनको पता चलता कि फलां इलाके में लोग परेशान हैं, वह उसकी मदद के लिए पहुंच जाते। वह लोगों को हमेशा सेवा और सहायता करने की प्रेरणा दिया करते थे। वह बच्चों को शिक्षित करने की कोशिश करते रहते थे। गरीब बच्चों को वह पढ़ाई में काफी मदद भी करते थे। उनकी लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी। लोग उन्हें संत मानते थे। उनकी लोकप्रियता के साथ-साथ उनसे जलने वाले लोग भी ग्रीस में पैदा हो गए थे। ऐसे लोग उनकी निंदा करते हुए नहीं थकते थे। उन लोगों को जब और जहां भी मौका मिलता, लाइकरगस का मजाक उड़ाते और गालियां देते। उन लोगों को लाइकरगस से पता नहीं क्या दुश्मनी थी। एक दिन की बात है।
वे कहीं से आ रहे थे, तो रास्ते में एक व्यक्ति उनसे मिला और उनकी निंदा करने लगा। वह रास्ते भर लाइकरगस को भला-बुरा कहता रहा। गालियां देता रहा, लेकिन लाइकरगस मौन साधे हुए चुपचाप चलते रहे। उन्होंने उस व्यक्ति को कुछ भी नहीं कहा। जब उनका घर आ गया, तो लाइकरगस ने उस व्यक्ति से कहा कि आप कुछ दिन हमारे घर में अतिथि बनकर रहें। हमें बहुत खुशी होगी। यह सुनकर वह व्यक्ति यह सोचकर रहने को तैयार हो गया कि अब कुछ दिन और उन्हें भलाबुरा कहने का अवसर मिलेगा।
वह व्यक्ति तीन दिन रहकर खूब गालियां देता रहा और तीन दिन बाद जब वह चलने लगा, तो उस व्यक्ति का स्वभाव बदला हुआ था। उसने लाइकरगस से अनुरोध किया कि वह कुछ दिन और उनके घर रहना चाहता है ताकि वह उनको गालियां देना भूल जाए। लाइकरगस ने कहा कि वह जब तक चाहे रह सकता है, लेकिन जब उनसे गलती हो जाए, तो वह उनकी कमी को बताते रहें। यह सुनकर वह व्यक्ति उनके चरणों में गिर पड़ा।