अकेले दिल्ली और पंजाब में लोकसभा चुनाव लड़ने का दावा करने वाले केजरीवाल विपक्षी गठबंधन के साथ तालमेल करके चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं। जिस कांग्रेस को आप ने हाशिए पर पहुंचाया, वही उनके साथ मिलकर चुनाव लड़ेगा तो नए समीकरण बनेंगे। इस हालात में भी दिल्ली में 15 साल तक मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित आदि के पूरी ताकत से चुनाव लड़ने से 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही।
तीन महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में अगर कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव से थोड़ा बेहतर प्रदर्शन कर दे तो कांग्रेस के दिन वापस लौटने लगेंगे। उसे सात सीटों में से तीन या चार भी लड़ने को मिल जाए तो हालात बदल जाएंगे। आप के लिए भी लोकसभा चुनाव उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप पर जनमत संग्रह बनने वाला है। चौधरी अनिल कुमार के इस्तीफा देने के कई महीने बाद इसी 31 अगस्त को अरविंदर सिंह लवली को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
थोड़ा पीछे जाएं तो 2016 में दिल्ली नगर निगम के उप चुनाव में कांग्रेस आप के बराबर में खड़ी हो गई लेकिन 2017 के निगम चुनाव से पहले कांग्रेस में इस कदर विवाद बढ़ा कि लगातार 15 साल तक मंत्री रहने वाले डॉ. अशोक कुमार वालिया ने पार्टी छोड़ने की खुलेआम धमकी दे दी और अरविंदर सिंह लवली, पूर्व विधान सभा उपाध्यक्ष अंबरीश गौतम, दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष रही बरखा सिंह ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा।
लवली और गौतम तो कुछ महीने में वापस कांग्रेस में आ गए लेकिन अनेक नेता दूसरे दल में शामिल हो गए। ज्यादातर नेता को घर बैठ गए। उस चुनाव के बाद पार्टी में अरविंद केजरीवाल का राजनीतिक कद और बढ़ गया। उन्होंने चुन-चुन कर अपने विरोधियों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। शुरू से आप का भारी विरोध करने वाले अजय माकन 2019 का लोकसभा चुनाव आप से समझौता करके लड़ना चाहते थे।
इस मुद्दे पर कांग्रेस में तब भी काफी विवाद हुआ। अपने बूते पर चुनाव लड़ने पर कुछ नेताओं के साथ अड़ी शीला दीक्षित को विरोधी नेताओं ने 81 साल की उम्र में न केवल प्रदेश अध्यक्ष बनवा दिया बल्कि उनके पुत्र संदीप दीक्षित के चुनाव लड़ने से मना करने पर दिल्ली उत्तर पूर्व लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने पर मजबूर कर दिया। उनको चुनाव की तैयारी का पूरा मौका नहीं मिला। इसके बावजूद उनके लड़ने का लाभ कांग्रेस को मिला। कांग्रेस सात में से पांच सीटों पर भाजपा के मुकाबले दूसरे नंबर पर रही। उसे आप से करीब चार फीसद वोट ज्यादा मिला।
उस चुनाव में अभी के प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़े और भाजपा के गौतम गंभीर के मुकाबले दूसरे नंबर पर रहे। कांग्रेस ने इस बढ़त का लाभ नहीं उठाया। बीमारी के बहाने अजय माकन के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद कंग्रेस में प्रयोग चलते रहे।
2020 के विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस गंभीर लग ही नहीं रह रही थी। भाजपा से कांग्रेस में आने वाले कीर्ति आजाद को पूर्वांचली वोट की वापसी करवाने के लिए प्रदेश की बागडोर सौंपते-सौंपते विधानसभा चुनाव से कुछ ही समय पहले वरिष्ठ नेता सुभाष चोपड़ा को प्रदेश कांग्रेस की बागडोर सौंप दी। कीर्ति आजाद बेगाने होकर विधान सभा चुनाव के बाद तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। 31 अगस्त 2023 को अध्यक्ष बने अरविंदर सिंह लवली के सामने पार्टी को मुख्य धारा की पार्टी बनाने की बड़ी चुनौती है। उन्हें पार्टी कार्यकर्ता, नेता और समर्थकों में पार्टी को वापस उसकी जगह दिलाने का भरोसा देना है। जो पार्टी छोड़कर गए हैं, उन्हें वापस पार्टी में लाने की चुनौती है। भाजपा को लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता में आने से रोकने के लिए बने इंडिया गठबंधन में कांग्रेस और आप दोनों हैं।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-मनोज कुमार मिश्र