स्वामी महावीर का नाम वर्धमान था। कहते हैं कि इनका महावीर नाम संगम नामक के एक देव ने रखा था। वर्धमान के पिता का नाम लिच्छविराज सिद्धार्थ और मां का नाम त्रिशला था। यह एक बहुत प्रतापी राजा थे। इन्होंने अपने राज्य की प्रजा का बहुत अच्छी तरह से खयाल रखा था। राजकुमार वर्धमान के बारे में एक कथा कही जाती है। कहते हैं कि जब वर्धमान छोटे थे, तब एक दिन वे कुण्डलपुर के उद्यान में अपने मित्रों एवं इन्द्र बालकों के साथ क्रीडा कर रहे थे। जैसा कि बच्चों का स्वभाव होता है, वह अपने मित्रों के साथ कभी इधर दौड़ते, तो कभी उधर। कभी फूल तोड़ते तो कभी पेड़ की पत्तियां। बच्चों का खेल चल ही रहा था कि वहां संगम नाम का एक देव वहां पहुंचा और उसने आते ही सर्प का रूप धारण कर लिया। सर्प का रूप धरकर संगम ने बड़ी तेजी से अपनी फुफकार छोड़ी।
यह देखकर बच्चे भयभीत होकर भागने लगे। लेकिन वर्धमान उस सांप के फन पर चढ़कर खेलने लगे। वह सांप के भयानक रूप को देखकर तनिक भी नहीं डरे। थोड़ी देर बाद सर्प का क्रोध शांत हुआ, तो वह वर्धमान की निडरता और वीरता को देखकर बहुत प्रभावित हुआ। उसने प्रकट होकर वर्धमान को प्रणाम किया और उनका नाम महावीर रखा। तभी से वर्धमान का नाम स्वामी महावीर पड़ गया। स्वामी महावीर ने जीवन भर अपने सुखों का परित्याग करके सबके कल्याण के बारे में ही सोचा।
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यदि वह चाहते तो अन्य महापुरुषों और योगियों की तरह हिमालय या किसी दूसरी जगह पर जाकर तपस्या कर सकते थे। अपना विकास कर सकते थे, लेकिन उन्होंने यह सब कुछ करने की जगह संसार में रहकर ही लोगों का कल्याण करना ज्यादा श्रेष्ठ समझा। दीन-दुखियों के दुखों का निवारण करने वाले स्वामी महावीर ने सत्य, अहिंसा और ब्रह्मचर्य के पालन की शिक्षा दी। लोगों को संयमित जीवन जीना सिखाया।
-अशोक मिश्र
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