सनातन संस्कृति में पर्व-त्योहारों का समावेश जनजीवन को ऊजार्वान बना देता है। यदि जीवन में ऊर्जा के संचार की बात हो तो मकर संक्रांति की चर्चा सबसे पहले होती है। मानना है कि आज के ही दिन भगवान सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते है। इसलिए मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है, जो साक्षात गति शीलता का प्रतीक है। मकर संक्रांति देश के लोकप्रिय त्योहारों में से एक है जिसे पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है।
मकर संक्रांति देश के हर प्रांत में मनाया जाता है। इसके नाम अलग हो सकते हैं, पर उद्देश्य एक होता है। बिहार एवं उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में इसे खिचड़ी पर्व के नाम से जाना जाता है। पंजाब में लोहड़ी, तमिलनाडु में पोंगल के नाम से जानते हैं। केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे संक्रांति के नाम से जाना जाता है। गुजरात में इसे उत्तरायण बोलते हैं। हिंदू धर्म के अनुसार माह को दो पक्षों (कृष्ण और शुक्ल) में बांटा गया है। उसी प्रकार साल को भी दो अयनों में बांटा गया है जिसे उत्तरायण एवं दक्षिणायन कहते हैं। इसमें प्रत्येक की अवधि छह माह की होती है।
दोनों मिलकर एक वर्ष पूर्ण करते हैं। मान्यता है कि जब सूर्य पूरी तरह से मकर राशि में प्रवेश कर जाते है तो सूर्य की उत्तरायण गति शुरू हो जाती है, इसलिए इसे मकर संक्रांति एवं उत्तरायण पर्व कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस पर्व के साथ कुछ पौराणिक कथाएं भी हैं, जिसका विशेष महत्व है। कहा जाता है कि भीष्म पितामह महाभारत युद्ध में घायल होने के बाद पूरी तरह से मरणासन्न पर थे, परंतु अपनी देह का त्याग नहीं कर पा रहे थे।
देह त्यागने के लिए उन्होंने मकर संक्रांति के दिन को चुना। जब सूर्य उत्तरायण हुए, तब उन्होंने स्वेच्छा से अपना शरीर त्यागा। मान्यता यह है कि जब सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है, तो उस समय शरीर छोड़ने वाली आत्माएं देव लोक को प्राप्त होती हैं, जबकि दक्षिणायन में शरीर छोड़ने वाली आत्माओं को लंबे समय तक अंधकार में रहना होता है।
यह भी कहते हैं कि स्वयं भगवान सूर्य मकर संक्रांति के दिन अपने पुत्र शनि देव से मिलने के लिए उनके घर पहुंचे थे। इसलिए इस दिन इन दोनों देवताओं की पूजा का भी विशेष महत्व है।
इस कारण मकर संक्रांति भी खास बन जाता है। चूंकि शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं, इसलिए मकर संक्रांति मनाने के पीछे यह भी एक मुख्य कारण है। शास्त्रों में मां गंगा के अवतरण की कहानी भी इस पर्व से जुडी है। शास्त्रों में उल्लेख है कि आज ही के दिन मां गंगा भगीरथी के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में मिली थीं। इसलिए आज के दिन को इस धरती पर मां गंगा का अवतरण भी माना जाता है।
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने भी स्वयं उत्तरायण का महत्व बताते हुए कहा है कि उत्तरायण के छह माह का कार्यकाल अत्यंत शुभ होता है। सूर्य का उत्तरायण होने से संपूर्ण पृथ्वी छह माह तक प्रकाशमय रहती है। इस कारण सब कुछ शुभ होता है। श्री कृष्ण कहते हैं कि जो लोग इस दौरान शरीर का त्याग करते हैं, वे सीधे ब्रह्मलोक में जाते हैं। यह दिन देवताओं का दिन भी माना जाता है। इस दिन देवता भी धरती पर अवतरित होते है तथा आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शास्त्रों में कहा गया है कि आज के दिन जप, तप, दान-पुण्य एवं पूजा अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से पाप में कमी आती है। अन्य दिनों की तुलना में आज के दान-तप का विशेष फल प्राप्त होता है। इसलिए जितना हो सके, उतनी सहजता से आज के दिन दान-पुण्य करना चाहिए। धर्म ज्योतिष में भी मकर संक्रांति की उल्लेखनीय चर्चा है। बताते हैं कि संक्रांति का शाब्दिक अर्थ ही वेग या गति से है। मकर संक्रांति को गतिशीलता का त्योहार भी कहा जाता है। जब राशियों के चक्र में बदलाव होता है तो पृथ्वी पर नए परिवर्तन की अनुभूति होती है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-सुधांशु जी महाराज