हरियाणा के माथे पर दशकों से कन्या भ्रूण हत्या और जन्म लेते ही लड़कियों को मार देने का कलंक लगा हुआ था। लोग लड़कियों को पैदा होते ही मार देने का अमानवीय कृत्य करते थे। नतीजा यह हुआ कि प्रदेश में लड़कियों की संख्या लगातार घटती गई। परिणाम स्वरूप जब लड़के कुंवारे रहने लगे, तब उन्हें कन्याओं की महत्ता समझ में आई। लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था।
नौ साल पहले जब प्रदेश के मुखिया मनोहर लाल बनाए गए, तो सबसे पहले उन्होंने इसी मामले पर ध्यान दिया। गरीबी, बेकारी और भुखमरी को दूर करने की कोशिश के साथ-साथ प्रदेश में लिंगानुपात में कमी लाना यानी लड़कियों की जन्मदर बढ़ाना उनकी प्राथमिकताओं में रहा। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले अधिकारियों को कन्या भ्रूण हत्या रोकने के निर्देश दिए। 22 जुलाई 2015 को पानीपत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ अभियान की शुरुआत की। इसका परिणाम भी सुखद रहा, लोगों में कन्या भ्रूण हत्या के प्रति जागरूकता पैदा हुई। प्रदेश में अभी फिलहाल लिंगानुपात एक हजार लड़कों के पीछे 922 लड़कियों का है।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल किसी भी तरह इसको 950 से ऊपर तक ले जाना चाहते हैं। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने प्रदेश के सभी अधिकारियों को चेतावनी दी है कि यदि कन्याभ्रूण हत्या रोकने में कोई भी प्रशासनिक अधिकारी, चिकित्सक अथवा अभिभावक बाधा बनेगा, तो उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे पड़ोसी राज्यों के अधिकारियों, चिकित्सकों से संबंध स्थापित करके निजी अस्पतालों, नर्सिंग होम्स आदि पर गहरी नजर रखें, ताकि इनमें हरियाणा के निवासी लिंग परीक्षण और कन्या भ्रूण हत्या जैसे कुकृत्य को अंजाम न दे सकें।
पिछले काफी दिनों से अभिभावक प्रदेश में सख्ती होने की वजह से पड़ोसी राज्यों में जाकर कन्या भ्रूण को गिराने जैसा पतित कार्य कर रहे हैं। जब तक सरकार को मामले की भनक लगती है, तब तक सब कुछ रफा-दफा हो चुका होता है। दूसरे राज्यों का मामला होने से प्रदेश सरकार उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई भी नहीं कर पाती है। पिछले काफी दिनों से प्रदेश में लिंगानुपात एक हजार लड़कों के पीछे 922 लड़कियों तक पहुंचने के बावजूद सरकार को लगता है कि अभी लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है। यही वजह है कि प्रदेश में कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। प्रदेश के लोग घटते लिंगानुपात को गंभीरता से अब लेने लगे हैं।
इसके बावजूद अभी गांवों में ऐसे लोग भी हैं जो गरीबी, बेकारी और अन्य सामाजिक दबावों के चलते कन्याओं को जन्म देना नहीं चाहते हैं। इसके पीछे कुछ सामाजिक कारण हैं, यह माना जा सकता है। उत्तर भारत में प्रचलित दहेज प्रथा भी इसका कारण है। दहेज की समस्या सुरसा की तरह मुंह बाए लड़की के पिता के सामने खड़ी है। दहेज की समस्या के चलते लड़की के अविवाहित रह जाना सचमुच कष्टकारक है।
संजय मग्गू