महात्मा बुद्ध अपने जीवन काल में कई बार श्रावस्थी आए थे। कहा तो यह भी जाता है कि वे चौबीस चौमासा उन्होंने श्रावस्ती के जेतवन में बिताथा। बाइस या तेईस बार तो वे लगातार आए थे। वे अपने शिष्यों और लोगों को अहिंसा, त्याग और प्रेम का संदेश देते थे। वे कहते थे कि जरूरत से ज्यादा का संग्रह करके रखना, एक तरह से दूसरों का हक मारना है। एक बार जब जेतवन में वह रुके हुए थे, तो श्रावस्ती का एक अमीर आदमी उनके पास आया और पूछने लगा कि भगवन! कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मन को शांति मिल सके। मैं काफी बेचैन रहता हूं। महात्मा बुद्ध जानते थे कि इस व्यक्ति को हमेशा धन संग्रह की चिंता रहती है। यह अपना कारोबार बढ़ाने और धन संग्रह के चक्कर में कई बार परिजनों से भी बातचीत नहीं करता है।
इसके पास परिवार के लिए समय ही नहीं होता है। महात्मा बुद्ध ने कहा कि बिना परिश्रम से कमाया गया धन सभी पुण्यों को नष्ट कर देता है। ऐसा धन व्यक्ति को चैन से बैठने नहीं देता है। इस वजह से ऐसे व्यक्ति से देवता भी प्रसन्न नहीं होते हैं। यदि तुम सुख से जीवन बिताना चाहते हो, तो परिश्रम करो। पसीना बहाओ। बिना श्रम किए कमाए गए धन का उपयोग सद्कार्यों में करो।
जितनी जरूरत हो, उतना रखकर बाकी सब जनकल्याण में खर्च कर दो। ऐसा करने पर तुम्हारे मन को शांति अवश्य मिलेगी। बिना परिश्रम से कमाए गए धन को छोड़कर यदि फकीर भी बन जाओगे, तब भी चैन नहीं मिलेगा। आलस्य त्यागो और जन सेवा में जुट जाओ, तभी तुम्हारा कल्याण संभव है। यह सुनकर वह व्यक्ति महात्मा बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और लोककल्याण में जुटने का वचन दिया।
अशोक मिश्र