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सांप्रदायिक पार्टी है आईयूएमएल?

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इन दिनों अमेरिका की यात्रा पर गए कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक ऐसे सवाल से जूझ रहे हैं जिसका जवाब आज से साठ साल पहले देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पास भी नहीं था। क्या इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग सांप्रदायिक पार्टी है? दरअसल, अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में मीडिया से बातचीत करते हुए राहुल गांधी ने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को सेक्युलर पार्टी बताया है। बस, तभी से भारतीय राजनीति में बावेला मचा हुआ है। कुछ लोग तो जानबूझकर इस मुद्दे को उछाल रहे हैं। कुछ लोग इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और आल इंडिया मुस्लिम लीग को एक ही समझ बैठने की गलती कर बैठते हैं। आल इंडिया मुस्लिम लीग का गठन 30 सितंबर 1906 में ढाका (अब बांग्लादेश में) में मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी। देश में जब स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था तब आल इंडिया मुस्लिम लीग भारत के टुकड़े करके पाकिस्तान बनाने की मांग कर रही थी, तो वहीं हिंदू महासभा जैसे दल हिंदू राष्ट्र की मांग कर रहे थे।

भारत के आजाद होने के बाद आल इंडिया मुस्लिम लीग को भंग कर दिया गया था। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का गठन 1948 में मद्रास के मोहम्मद इस्माइल ने की थी और संविधान के प्रति पूरी प्रतिबद्धता जताई थी। आईयूएमएल यानी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के बारे में इतिहासकारों और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इसके एजेंडे में कहीं से भी सांप्रदायिकता की बू नहीं आती है। यह मुसलमानों के अधिकारों और हितों की बात तो करती है, लेकिन दूसरे समुदाय को न बुरा कहती है, न ही उनके अधिकारों या हितों में कटौती की बात करती है। यह सांप्रदायिक पार्टी (कम्युनल पार्टी) नहीं, सामुदायिक (कम्युनिटेरियन) पार्टी है।

नेहरू के शासनकाल में कांग्रेस, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और आईयूएमएल के बीच गठबंधन हुआ था, जो अब तक किसी न किसी रूप में चला आ रहा है। तब भी जवाहर लाल नेहरू पर सवाल उठाए गए थे। केरल में कांग्रेस का आज भी आईयूएमएल के साथ गठबंधन है। यदि सांप्रदायिकता के आधार पर बात की जाए, तो इसके कार्यकर्ता और नेता किसी तरह की हिंसात्मक कार्रवाई में शरीक नहीं पाए गए हैं। जैसे पीएफआई, पूर्व की सिम्मी जैसे संगठन पाए जाते रहे हैं। आईयूएमएल के नेता कई बार यह कहते रहे हैं कि सांप्रदायिक मुस्लिम लीग मर चुकी है। संविधान और कानून व्यवस्था पर पूरी तरह अपनी आस्था रखने वाली पार्टी ने केरल में वर्ष2021 के विधानसभा चुनाव में 8,27 प्रतिशत वोट हासिल करके 15 सीटों पर जीत हासिल की थी।

वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में 5.48 प्रतिशत वोट हासिल करके दो सीटों पर सफलता पाई थी। तमिलनाडु में भी एक सीटें जीती थीं। राहुल गांधी के इस बयान को भविष्य में किस तरह पेश किया जाता है, यह तो समय बताएगा। लेकिन किसी संगठन को अपने नाम के साथ धर्म विशेष को जोड़ना चाहिए या नहीं, सबसे बड़ा सवाल तो यही है।

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