फरीदाबाद के अगवानपुर इलाके में एक बहन अपने भाई को पढ़ाई करने की हिदायत देकर अपनी जान गंवा बैठी। ओम एनक्लेव निवासी 19 वर्षीय युवक काफी देर से मोबाइल पर गेम खेल रहा था, यह बड़ी बहन से देखा नहीं गया। उसने भाई को समझाया कि इस समय उसे पढ़ना चाहिए। इतना सुनते ही युवक का पारा चढ़ गया और उसने बहन का गला घोंटकर उसे मौत के घाट उतार दिया। एक अन्य घटना में माता-पिता और परिवार द्वारा भाई को ज्यादा महत्व मिलने से क्षुब्ध किशोरी ने अपने छोटे भाई की जान ले ली। वह इस बात को लेकर काफी दु:खी थी कि उसके मम्मी-पापा भाई को खेलने के लिए अपना मोबाइल दे देते थे, लेकिन उसके द्वारा मांगे जाने पर डांटना-डपटना शुरू कर देते थे। उक्त दोनों घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं कि मोबाइल किस कदर रिश्तों की मिठास और आत्मीयता के लिए घातक बन चुका है।
मोबाइल ने हमारा जीवन तो सहज किया है, लेकिन हमसे बहुत कुछ छीन रहा है लगातार। घर-परिवार में आपसी संवाद का खत्म हो जाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। राह चलते-चलते अच्छे-भले लोग दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं। कान में लीड लगी है, इसलिए पीछे या साइड से आने वाले वाहन का हॉर्न सुनाई नहीं देता। नतीजतन, कभी-कभी जान भी चली जाती है। कहीं भी नजर डालिए, दस बच्चों में से आठ मोबाइल पर व्यस्त मिलते हैं। कोई गेम खेलता रहता है, तो कोई वीडियो देखता है। मानो, बाकी दुनिया की उन्हें कोई परवाह नहीं! घर के सदस्यों के साथ बच्चों का संवाद खत्म होने के पीछे मोबाइल सबसे बड़ा कारण है। कोरोना काल में आॅनलाइन पढ़ाई के लिए मिला मोबाइल अब बच्चे छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं।
माता-पिता भी अपने करियर और दीगर गतिविधियों में इतने मशरूफ हैं कि उन्हें यह भी चिंता नहीं कि बच्चे अनजाने में हाथ-बेहाथ होते जा रहे हैं। यह चिंतनीय विषय है कि बच्चे मोबाइल को अपना सब कुछ समझ बैठे हैं। वे पढ़ाई से बचने की कोशिश करते हैं। रोकने-टोकने पर उनका पारा देखते ही देखते चढ़ जाता है और वे हिंसा पर उतारू हो जाते हैं। मोबाइल हमारी जरूरत बना रहे, सहायक बना रहे, लेकिन अपनी मजबूरी नहीं बनने देना चाहिए।
संजय मग्गू