Editorial: इतिहास में नेपोलियन बोनापार्ट को विश्व के सबसे महान सेनापतियों में गिना जाता है। उसने फ्रांस में एक नयी विधि संहिता लागू की जिसे नेपोलियन की संहिता कहा जाता है। वह इतिहास के सबसे महान विजेताओं में से एक था। उसके सामने कोई रुक नहीं पा रहा था। जब तक कि उसने 1812 में रूस पर आक्रमण नहीं किया, जहां सर्दी के कारण उसकी सेना को बहुत क्षति पहुँची। 18 जून 1815 वॉटरलू के युद्ध में पराजय के पश्चात अंग्रजों ने उसे अन्ध महासागर के दूर द्वीप सेंट हेलेना में बन्दी बना दिया। छ: वर्षों के अन्त में वहां उसकी मृत्यु हो गई।
इतिहासकारों के अनुसार अंग्रेजों ने उसे संखिया (आर्सेनिक) का विष देकर मार डाला। वह अपने सैनिकों को बराबर महत्व देता था। एक बार की बात है। उसकी सेना शत्रु पक्ष से भयंकर युद्ध कर रही थी। कुछ मील की दूरी पर सैनिक शिविर में नेपोलियन विश्राम कर रहा था। तभी युद्ध क्षेत्र से एक सैनिक सेनापति का पत्र लेकर शिविर में पहुंचा। युद्ध और युद्ध क्षेत्र से नेपोलियन के शिविर तक आने की वजह से उसका घोड़ा थककर चूर हो गया था। रास्ते में उसकी मौत हो गई थी।
नेपोलियन ने पत्र पढ़ने के बाद उसका जवाब लिखा। उसने सैनिक से कहा कि वह यह पत्र लेकर मेरे घोड़े पर सवार होकर तुरंत युद्ध के मैदान में पहुंचे। यह सुनकर सैनिक आश्चर्य चकित रह गया। वह एक विशेष नस्ल का घोड़ा था और नेपोलियन को अत्यंत प्रिय था। सैनिक ने कहा कि आपके घोड़े पर मेरा बैठना शोभा नहीं देता है। तब नेपोलियन में कहा कि युद्ध क्षेत्र में एक सैनिक और सेनापति में कोई अंतर नहीं होता है। किसी सैनिक का महत्व कम नहीं होता। इतना कहते हुए नेपोलियन ने जबरदस्ती उस सैनिक को अपने घोड़े पर चढ़ाकर भेज दिया।
– अशोक मिश्र