संजय मग्गू
प्रदूषण भारत की ही नहीं, पूरे विश्व की समस्या है। भारत में भी कई राज्यों में प्रदूषण सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है। सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की हालत काफी खराब हो जाती है। इन राज्यों में वायु गुणवत्ता सूचकांक साढ़े तीन सौ से साढ़े चार सौ के बीच आमतौर पर रहता है। इसके चलते इन प्रदेशों में फेफड़े के कैंसर, टीबी और सांस से जुड़ी बीमारियों के रोगी अन्य प्रदेशों की अपेक्षा काफी पाए जा रहे हैं। बीते दिनों हुई अच्छी बरसात की वजह से लगभग दौ सौ दिन तक दिल्ली-एनसीआर के लोगों ने अच्छी हवा में सांस ली। यह आठ साल में तीसरा मौका है। लेकिन दशहरा पर रावण जलने और निकट भविष्य में आने वाली दीपावली के चलते प्रदूषण का संकट फिर सिर पर आ खड़ा होगा, इसकी आशंका अभी से जाहिर की जाने लगी है। यह बात सही है कि पिछले कुछ वर्षों की अपेक्षा पिछली बार दिल्ली, हरियाणा और पंजाब आदि प्रदेशों की हवा थोड़ा साफ रही है। लेकिन यह संतोषजनक नहीं है। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने से वायु गुणवत्ता सूचकांक दो सौ से नीचे फिर भी नहीं जा रहा है। दशहरे की शाम वायु गुणवत्ता सूचकांक पिछले तीन साल में सबसे कम 115 रही। केंद्र सरकार ने पराली जलाने की घटनाओं को काफी गंभीरता से लिया है। केंद्र सरकार के अधीन आने वाली वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सरकारों को पत्र लिखकर कहा है कि पराली जलाने से रोकने में नाकाम रहने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। पराली जलाने से पैदा हुए कार्बन और धुएं के कारण वायु प्रदूषण काफी हद तक बढ़ जाता है। शहरों में चल रही फैक्ट्रियां कुछ ज्यादा ही प्रदूषण पैदा करती हैं। ये फैक्ट्रियां प्रदूषण कम करने का उपाय भी नहीं करती हैं। सच तो यह है कि प्रदूषण का सबसे ज्यादा कारण फैक्ट्रियां, वाहन, एसी आदि हैं। वातावरण को सबसे ज्यादा प्रदूषित करने में इनका सबसे बड़ा हाथ होता है। पराली का जलना भी वायु प्रदूषण का कारण है, इससे किसी को इनकार नहीं है। जिन दिनों ट्रैक्टर और अन्य इलेक्ट्रिक कृषि यंत्रों का उपयोग खेती में नहीं किया जाता था, उन दिनों पराली को बाकायदा पशु चारे के रूप में इस्तेमाल कर लिया जाता था। किसान पराली का उपयोग पशु चारे के साथ साथ झोपड़ी आदि बनाने में उपयोग करते थे, लेकिन जैसे कृषि यंत्रों का उपयोग बढ़ता गया घर से पशु गायब होते गए। जब घर में पशु ही नहीं हैं, तो पशु चारे का क्या उपयोग। नतीजा यह हुआ कि किसानों ने सारे झंझट से बचने के लिए पराली को जलाना शुरू कर दिया। किसान यदि पराली वाले खेत को जोतकर पराली को मिट्टी में मिला दें,तो वह मिट्टी के साथ मिलकर खाद का काम करेगी।
संजय मग्गू