अमेरिका में गैलप ने वर्ष 2023 में नैतिकता और ईमानदारी को लेकर 23 व्यवसायों में मूल्यांकन किया था। नैतिकता और ईमानदारी में सबसे ज्यादा विश्वनीय नर्सिंग पेशा पाया गया। आश्चर्य की बात है कि राजनेताओं की विश्वसनीयता सबसे कम पाई गई। अमेरिकी लोगों ने ईमानदारी और नैतिकता के मामले में नेताओं को सबसे कम रेटिंग दी। नेताओं के साथ-साथ सीनेटरों, विज्ञापन व्यवसायियों और कार विक्रेताओं को भी सबसे कम रेटिंग मिली। यदि यह सर्वेक्षण भारत में किया गया होता, तो कमोबेस यही रिजल्ट आता। इस सर्वेक्षण और दुनिया भर के नेताओं के चरित्र को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि नेताओं की छवि निस्संदेह पिछले कुछ दशकों से खराब हुई है।
इसके लिए खुद नेता ही जिम्मेदार हैं। कुछ साल पहले ‘मर जाऊंगा, लेकिन एनडीए के साथ नहीं जाऊंगा’ कहने वाले नीतीश कुमार ने अभी हाल में ही एनडीए के साथ नई सरकार बनाई है। एनडीए का नेतृत्व करने वाली भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि अब नीतीश कुमार के लिए एनडीए में कोई जगह नहीं बची है। उसी अमित शाह ने नीतीश कुमार के एनडीए के साथ आने पर बधाई दी है। यह तो हाल का ही उदाहरण है। पिछले कई दशकों से ऐसा होता चला आ रहा है। नेताओं की रातोंरात आस्था बदल जाती है। नैतिकता बदल जाती है। भारत और कुछ गिने-चुने देशों को छोड़कर विचारधारा और कार्यक्रम के आधार पर दलबदल बहुत कम देखने को मिलता है। अपनी विश्वसनीयता खोने के लिए नेता खुद जिम्मेदार हैं।
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नेताओं की कही गई दस में से पांच बातें लोग झूठ मानते हैं। केवल समर्थक ही नेताओं की बात पर विश्वास करते हैं। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं हो रहा है, पूरी दुनिया के नेताओं का यही हाल है। हां, श्रमिक संगठनों के नेताओं की ईमानदारी और नैतिकता में पिछले कई सालों से बदलाव नहीं आया है। वे आज भी राजनेताओं की अपेक्षा कहीं ज्यादा विश्वसनीय माने जाते हैं।नर्सिंग पेशे की ईमानदारी और नैतिकता सर्वविदित है। भारत में भी पेशागत ईमानदारी, मेहनत और सेवा की भावना नर्सों में काफी पाई जाती है। कुछ डॉक्टर और नर्सिंग होम्स भले ही अपने मरीजों के साथ छलकपट करते हों, लेकिन बहुसंख्यक डॉक्टर आज भी विश्वसनीय माने जाते हैं। सर्जन, दंत चिकित्सक, फार्मासिस्ट और नर्सों की विश्वसनीयता का कोई जवाब नहीं है।
एक से बीस दिसंबर 2023 के बीच किए गए सर्वे पुलिस अधिकारी, मनोवैज्ञानिक और अध्यापकों की भी रेटिंग टॉप 10 में शामिल है। कुछ पेशे ऐसे हैं जिस पर देश की आम जनता पूरा विश्वास करती है। इसमें अदालत भी आती है। अदालती फैसले पर लोगों को पूरा भरोसा होता है। ठीक इसी तरह अध्यापक की ईमानदारी और नैतिकता सदियों से उच्च स्तर पर रही है। हमारे देश में मां-बाप के बाद गुरु यानी अध्यापक को ही वह दर्जा हासिल है जो भगवान को भी हासिल नहीं है। गुरु के बाद ही भगवान का दर्जा आता है। अध्यापक ने जो कह दिया, वही अटल सत्य है। यह भी सच है कि हर पेशे में विकृति आई है, इसके बावजूद नर्सिंग, अध्यापन, चिकित्सा जैसे पेशे पाक साफ हैं।
-संजय मग्गू
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