मनीष कुमार
अगर आपसे यह प्रश्न पूछा जाए कि इस पृथ्वी पर सबसे खतरनाक पशु कौन है तो आपके मन में शेर,बाघ, चीता जैसे अन्य पशुओं का विचार आएगा । लेकिन मेरे अनुसार इस पृथ्वी का सबसे खूंखार पशु मनुष्य है, मनुष्य ने इस ग्रह को जितनी क्षति पहुंचाई है शायद ही किसी अन्य पशु की पूरी प्रजाति ने मिलकर उतनी क्षति पहुंचाई होगी।
आज मनुष्य सिर्फ अपना स्वार्थ देखता है इसके लिए वह सारी हदें पार करके प्रकृति पर विजय पाना चाहता है जबकि मनुष्य यह नहीं समझ रहा कि पृथ्वी केवल उसका घर नहीं बल्कि लाखों जीव जंतुओं का घर है लेकिन सब की परवाह किए बिना मनुष्य अंधाधुध जंगल काट व जला रहा है, जरूरत से कहीं ज्यादा शिकार कर रहा है, जीवाश्म इंधनों को बनने में लाखों साल लग जाते हैं यह जानते हुए भी उनके उपयोग में जरा भी कोताही नहीं बरती जा रही । ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के प्रति भी लोगों की जागरूकता बड़ी है लेकिन फिर भी ग्लोबल वार्मिंग कम होने के बजाय कई गुना तेजी से बढ़ रही है हमारी धरती पूर्ण रूप से बीमार हो चुकी है और ना जाने कितने लोगों को इसकी भनक तक नहीं है
कुछ वर्षों से कुछ बुद्धिजीवी लोगों द्वारा जगह-जगह पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं इससे प्रतिवर्ष लोगों में जागरूकता तो बढ़ रही है लेकिन पृथ्वी के स्वास्थ्य में कोई खास सुधार नहीं हो रहा बल्कि जागरूकता फैलाने के बावजूद भी दिन प्रतिदिन हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं । प्रतिवर्ष औसतन प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत में लगभग दो से तीन प्रतिशत की वृद्धि देखी जा रही है। पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक ऊर्जा की खपत में व प्रति व्यक्ति जीवाश्म ईंधन की खपत में प्रतिवर्ष लगभग दो प्रतिशत की वृद्धि हुई है। प्रतिवर्ष औसतन एक-दो मिलियन पेड़ संपूर्ण विश्व में लगाए जा रहे हैं जबकि 15 बिलियन पेड़ प्रतिवर्ष काटे जा रहे हैं, परिणामस्वरूप पृथ्वी का औसत तापमान 0.06 डिग्री सेल्सियस प्रतिदशक की दर से बढ़ रहा है।
मानव की इन्हीं गतिविधियों की वजह से मौसम चक्र में बदलाव,लू चलना, जल संकट ,अत्यधिक तापमान आदि घटनाएं सामने आ रही हैं ।वैश्विक स्तर पर लगभग सात मिलियन लोग वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों के कारण मरते हैं, विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व की 91% जनसंख्या ऐसी स्थान पर निवास कर रही है जहां की वायु गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देशों से अधिक है वैश्विक स्तर पर 2.5 बिलियन लोगों को सुरक्षित पेयजल नहीं पहुंच रहा है, हर साल 8 मिलियन टन प्लास्टिक महासागरों में जाता है जो समुद्री जीवन को नुकसान पहुंचता है। हम केवल भारत की ही बात करें तो हम विकसित देश बनने की दौड़ में इतने अंधे हो चुके हैं कि हम अंधाधुंध उद्योग स्थापित करते चले जा रहे हैं जिससे शुद्ध वायु,जल के साथ-साथ हम ना जाने कितनी प्रजातियां को विलुप्त करते जा रहे हैं। ऐसा करते हुए हम नदियों, पहाड़ों अन्य जानवरों के परिवेश कुछ नहीं देख रहे हैं, हाल ही में लद्दाख में हुई घटनाएं इसका ताजा उदाहरण हैं।
इन सारी घटनाओं का बढ़ाने का बहुत बड़ा कारण जनसंख्या विस्फोट भी है आज विश्व की जनसंख्या आठ अरब पहुंच चुकी है जिसमें से 1.43 अरब जनसंख्या तो सिर्फ भारत में ही निवास करती है जनसंख्या नियंत्रण के लिए आज युद्ध स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है । पर्यावरण संरक्षण केवल कागजों में ही सीमित न रह जाए पृथ्वी को पुन: स्वस्थ ग्रह बनाने के लिए यदि धरातल पर सच्ची निष्ठा से कार्य नहीं किया गया तो इसके परिणाम भयावह व अकल्पनीय होंगे। कैंसर ग्रस्त पृथ्वी को इसी हाल पर छोड़ा गया तो वो दिन ज्यादा दूर नहीं जब मंगल आदि ग्रहों की तरह पृथ्वी पर भी जीवन चक्र जल्द ही समाप्त हो जाएगा।
आज हम सबको सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करने,ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग करने, अनवीकरणीय स्रोतों का अति आवश्यक होने पर ही उपयोग करने ,आने वाली पीढियों के हितों को ध्यान में रखते हुए संसाधनों का उपयोग करने ,प्रति माह एक वृक्ष लगाने व उसकी देखभाल करने और प्रकृति को नुकसान न पहुंचाते हुए विकास चक्र को चलाए रखने का संकल्प लेने की सख्त आवश्यकता है। क्योंकि हमें यह धरती हमारे पूर्वजों से विरासत में नहीं मिली है हमें ये पवित्र धरा अपने बच्चों से उधार के रूप में मिली है।
प्रदूषण की मार धरती हो रही बीमार
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