श्रीकरणपुर की जनता ने डबल इंजन वाली सरकार रूपी रेलगाड़ी से ‘टीटी’ को ही उतार दिया। ‘टीटी’ मतलब सुरेंद्रपाल सिंह टीटी जो चुनाव परिणाम आने से पहले ही राजस्थान मंत्रिमंडल में शामिल कर लिए गए थे। हालांकि, वह मंत्री पद से इस्तीफा दे चुके हैं। यह भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में शायद पहला मौका था जब किसी विधानसभा प्रत्याशी को मंत्रीपद सौंपा गया हो। इसे भाजपा का अति आत्मविश्वास ही कहा जाएगा। 3 दिसंबर को तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में मिली प्रचंड जीत के मद में भाजपा को सुरेंद्र पाल सिंह टीटी के जीत जाने का इतना विश्वास था कि चुनाव परिणाम आने से पहले ही स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री बना दिया गया।
जिस दिन मतदान हुआ उन्हें विभाग भी आवंटित कर दिया गया। विभाग भी कौन सा दिया गया, कृषि विपणन विभाग, कृषि सिंचित क्षेत्र विकास एवं जल उपयोगिता, इंदिरा गांधी नहर विभाग और अल्पसंख्यक मामलात के साथ वक्फ विभाग। जो लोग श्रीगंगानगर जिले की भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति से वाकिफ हैं, उन्हें मालूम है कि इंदिरा गांधी नहर विभाग का मंत्रालय वहां के मतदाताओं के लिए उतना महत्व नहीं रखता है क्योंकि श्रीकरणपुर का क्षेत्र गंगनहर के अधिकार क्षेत्र में आता है। सुरेंद्रपाल सिंह टीटी को जो विभाग सौंपे गए थे, उनमें न तो कृषि विभाग था, न सिंचाई विभाग और न ही विकास से जुड़ा कोई महकमा। शायद यही बात श्रीगंगानगर जिले के श्रीकरणपुर विधानसभा क्षेत्र के लोगों को रास नहीं आई।
उन्होंने भाजपा के अति आत्मविश्वास को एक झटका दे ही दिया। वैसे श्रीगंगानगर का मिजाज हमेशा से ही ऐसा ही रहा है। यहां से राजस्थान के पुरोधा माने जाने वाले भैरोसिंह शेखावत को भी हार का मुंह देखना पड़ा था। बात 1993 की है। भाजपा ने 1993 को भैरो सिंह शेखावत को यहां उम्मीदवार बनाया। उन दिनों भैरो सिंह शेखावत राजस्थान के कद्दावर नेता माने जाते थे। किसी को सपने में भी गुमान नहीं था कि शेखावत जैसा नेता यहां से चुनाव हार जाएगा। उस चुनाव में वह मुख्यमंत्री पद के भी प्रबल दावेदार थे। भाजपा ने इस मामले में थोड़ी चालाकी यह बरती थी कि उनका पाली जिले के बाली विधानसभा क्षेत्र से भी नामांकन भरवा दिया था।
शेखावत के पक्ष में उस इलाके के ज्यादातर धनाढ्य, जमींदार, व्यापारी आदि थे, लेकिन जब चुनाव परिणाम सामने आया, तो वे तीसरे नंबर रहे। श्रीकरणपुर के चुनाव परिणाम से कांग्रेस में जरूर उत्साह है। सीट भले ही एक रही हो, लेकिन भाजपा के अति आत्मविश्वास पर जो करारी चोट लगी है, उससे कांग्रेस को राजस्थान की सत्ता गंवाने का दुख थोड़ा कम जरूर हुआ है। कांग्रेस प्रत्याशी रूपिंदर सिंह कुन्नर के दिवंगत पिता गुरमीत सिंह कुन्नर वैसे तो सचिन पायलट खेमे के माने जाते थे, लेकिन उनके पुत्र को जिताने की जी जान से कोशिश पूर्व मुख्यमंत्री अशोेक गहलोत और प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भी की थी। प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने अपना मतभेद भुलाकर चुनाव प्रचार किया और नतीजा सकारात्मक रहा। यदि विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेसी नेता अपने मतभेद भुला देते तो परिणाम शायद दूसरा होता।
-संजय मग्गू