ब्रज श्रीराधा के नाम से नारी सशक्तिकरण का सर्वोच्च केंद्र हैं। ऐसी मिसाल दुनिया में कहीं नहीं मिलेगी। यहां स्त्री की स्वतंत्र सत्ता के रूप में आठों याम राधे-राधे नाम की गूंज सुनाई देती है। ब्रज की अधिष्ठात्री श्रीराधा हैं। साधरण शब्दों में राधा जी को ब्रज की अलबेली सरकार भी बोला जाता है। अलबेली इसलिए जहां राधा तत्व को लेकर वेद-शास्त्र मौन हैं। श्रीमद्भागवत भी मौन है। कुछ जाहिर ही नहीं करते हैं। राधा नाम प्रेम के महाभाव की एक रूहानी स्थिति है।
असल में प्रेम में महाभाव की रूहानी अनुभूति पूर्ण रूपेण अनिवर्चनीय होती है, कल्पना से परे होती है, इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। इसलिए कहा जाता है सुकदेव जी श्रीमद्भागवत में राधा तत्व का वर्णन करने का प्रयास करते हैं तो कुछ कह नहीं पाते हैं। ऐसे में सुखदेव जी की समाधि लग जाती है।
प्रेम में महाभाव की बहने वाली अविरल धारा ही अपने प्रकट स्वरूप में राधा हैं। रसिक संत गूंगे के गुड़ की तरह राधा नाम का आनंद लेते हैं, भाव विभोर होते हैं और यही आनंद चरम अवस्था में अनहद नाद है। जिसे जटिल साधना से ही प्राप्त करते हैं। वहीं रसिक भक्त प्रेमयोग से सहज ही अनहद की अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं। रसिक भक्त के लिए कुछ भी असंभव तो है नहीं। पर प्रेम करना जितना सहज दिखता है, व्यवहार में उतना ही दुरुह है। इसका मार्ग भी सीधा नहीं है। प्रेम को आराधना (इबादत) के रूप में स्थापित करने का श्रेय श्रीकृष्ण को जाता है। यही वजह है कि श्रीकृष्ण विलक्षण हैं। अतुलनीय हैं।
श्रीकृष्ण की परम आराध्य प्रणाल्हादिनी शक्ति श्रीराधा की प्रेम प्रेरणा ने ही ब्रज के गोपाल को श्रीकृष्ण के रूप में जगत के सामने स्थापित किया। फिर तो ऐसी प्रेम प्रेरक शक्ति का श्रीकृष्ण के लिए आराध्य होना स्वाभाविक है। जो प्रेम शक्ति जीवन की गति को प्रगति के पथ पर अग्रसर कर दे, वही प्रेम सच्चा है। जो साकार को निराकार और निराकार को साकार की ओर ले जाए, वही तो प्रेम है। सच्चे प्रेम का एक ताना जीवन से जुड़ी दृष्टि और दृष्टिकोण को बदल देता है। मन मयूर नृत्य करने लगता है।
कन्हैया के नटखटपन से जुड़ी शिकायतों से तंग आकर गुस्से में ऐसा ताना मारा हो, जिसने ब्रज के गोपाल को बागी बना श्रीकृष्ण के रूप में स्थापित करने का काम राधा की ताने रूपी प्रेम प्रेरणा ने किया। प्रेम तो भवसागर में डूबते मनुष्य को उबारने का काम करता है। इस भाव को फिल्म सरस्वतीचंद्र के गीत की इन पंक्तियों से सहज ही समझ सकते हैं-
छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए
प्यार से भी जरूरी कई काम हैं
प्यार सब कुछ नहीं जिंदगी के लिए।
और फिर श्रीकृष्ण के ब्रज से जाने के बाद भागवत धर्म की स्थापना के अपने मिशन, पथ पर निष्काम भाव से संघर्ष करते हुए वह आगे बढ़ते रहे। प्रेम को लेकर श्रीकृष्ण का सम्पूर्ण कृतित्व और व्यक्तित्व अपने में इन्कलाबी है। वह अपने समय की राजनीतिक और सामाजिक स्थितियों से असहमत नजर आते हैं और उसके बदलाव के प्रयासों में जुट जाते हैं। हर चुनौती को स्वीकार करते हुए संघर्ष के पथ पर अग्रसर होते हैं। नारी सम्मान की श्रेष्ठता को स्थापित करने के लिए एक ओर जहां राधा को अपनी आराध्य बनाते, वहीं दूसरी ओर द्रोपदी के अपमान के बदले में महाभारत कराते हैं। यही श्रीकृष्ण को उच्च शिखर पर ले जाता है। श्रीकृष्ण के सरोकारों की ऊर्जा का आधार राधा का प्रेम ही तो हैं। प्रेम पुरुष श्रीकृष्ण के लिए बंदगी है, पर ब्रह्मज्ञानी उद्धव को यह बात समझ नहीं आयी तो श्रीकृष्ण ने उद्धव को प्रेम का सबक सिखाने के लिए पाती लेकर ब्रज भेज दिया। ब्रज आने पर गोपियों ने उद्धव के साथ संवाद में जो हाल किया, वह ज्ञान पर प्रेम की विजय का अनुपम, अद्वतीय उदाहरण है। तभी तो ब्रज में गाया जाता है कि-
ये तो प्रेम की बात है ऊधौ बंदगी तेरे बस की नहीं है।
यहाँ सर दे के होते हैं सजदे आशिकी इतनी सस्ती नहीं है।
विवेक दत्त मथूरिया