Wednesday, March 12, 2025
25.1 C
Faridabad
इपेपर

रेडियो

No menu items!
HomeEDITORIAL News in Hindiमुर्दा है लोककलाकारों का सम्मान न कर पाने वाला समाज

मुर्दा है लोककलाकारों का सम्मान न कर पाने वाला समाज

Google News
Google News

- Advertisement -


संजय मग्गू
गायक, कलाकार, साहित्यकार, नर्तक यह समाज की थाती होते हैं। इनके काम से देश और समाज का मान बढ़ता है। यह किसी जाति, धर्म या पंथ में पैदा हुए हों, अपने काम और उपलब्धियों से पूरे समाज के हो जाते हैं। इनकी उपलब्धियों पर सबको गर्व होता है और जब यही लोग अपने चौथेपन यानी बुढ़ापे की ओर अग्रसर हो जाते हैं, सामाजिक जीवन में सक्रिय नहीं रह पाते, तो जैसे पूरा समाज उन्हें भुला देता है। आज यही हाल पंडवानी गायिका तीजन बाई का है। 78 साल की तीजन बाई पिछले दो साल से लकवाग्रस्त होकर बिस्तर पर पड़ी हैं। यह वही पंडवानी गायिका तीजन बाई हैं जिनकी किसी कार्यक्रम में उपस्थिति से चार चांद लग जाते थे। लोग इनके साथ दो बात करके अपने को धन्य समझते थे, फोटो खिंचवाकर एक अमूल्य निधि की तरह अपने घर में संजोकर रखते थे और बड़े गर्व से लोगों को दिखाकर गर्वानुभूति करते थे। लेकिन वही पंडवानी गायिका तीजन बाई जिसे भारत सरकार ने उनकी लोकगायिकी पर रीझकर पद्म विभूषण सौंपकर अपनी पीठ थपथपाई थी, उसी सरकार के नुमाइंदों को इतनी फुरसत नहीं है कि वह उस लोकगायिका की पीड़ा का समाधान कर सके। लाचार लकवाग्रस्त तीजन बाई इन दिनों अपने दामाद के यहां हैं। उनकी बेटी की मृत्यु हो चुकी है। घर में बहू है, लेकिन बेटे की भी मौत हो चुकी है। पिछले 13 सितंबर को तीजन बाई ने छत्तीसगढ़ संस्कृति विभाग को कलाकारों को दी जाने वाली दो हजार रुपये पेंशन के बारे में लिखा था कि उन्हें पिछले आठ महीने से पेंशन नहीं मिली है। यह पत्र आज तक संस्कृति विभाग को नहीं मिला है। तीजन बाई ने यह आवेदन कलेक्टर को दिया था। उन्हें इलाज के लिए 88 हजार रुपये की जरूरत है। शासन-प्रशासन से उन्होंने अपने इलाज के लिए मदद की  गुहार लगाई थी, लेकिन आज तक वह उन्हें हासिल नहीं हुआ है। कहा जाता है कि प्रख्यात कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को अपनी बेटी सरोज के इलाज के लिए दस हजार रुपये की जरूरत थी। फक्कड़ निराला ने स्वाभिमान के चलते वैसे किसी से मदद की गुहार नहीं लगाई थी, लेकिन इस बात को जानते सभी थे। तत्कालीन शासन, प्रशासन और देश के तमाम धन्नासेठ। लेकिन उनकी मदद करने के लिए कोई आगे नहीं आया। आखिरकार 1935 में 18 वर्षीय सरोज की मृत्यु हो गई। यह पीड़ा निराला सहन न कर सके और सरोज स्मृति लिखकर कुछ ही दिन बाद वह खुद चल बसे। सरोज स्मृति को दुनिया के बेहतरीन शोक गीतों में गिना जाता है। इसके बाद जब देश आजाद हुआ, तो देश और प्रदेशों की सरकारों ने निराला की स्मृति में कई आयोजन किए और लाखों रुपये खर्च किए, लेकिन बस दस हजार रुपये किसी की जेब से नहीं निकले। आज तीजन बाई भी लगभग उसी हालात से गुजर रही हैं। कभी तीजन बाई के सम्मान में अपनी पलकें बिछाए रहने वाले देश और प्रदेश के धनकुबेर, प्रशासनिक अधिकारी और समाज इतना संवेदनहीन हो गया है कि एक कलाकार को अपनी दो हजार रुपये मासिक पेंशन और इलाज के लिए गिड़गिड़ाना पड़े। ऐसा शासन, प्रशासन और समाज किस काम का है जो अपने देश की विभूतियों का आदर सत्कार न कर सके।

- Advertisement -
RELATED ARTICLES
Desh Rojana News

Most Popular

Must Read

बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रमाण है होली

वी के पूजाभारत एक कृषि प्रधान देश है, और जैसा कि सभी को विदित है कि कृषि ही मनुष्य की आजीवका का प्रमुख साधन...

Recent Comments