संजय मग्गू
इन दिनों पूरी दुनिया का लगभग आधा हिस्सा अशांत है। इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस के आंकड़ों पर भरोसा किया जाए तो पूरी दुनिया में 56 देश ऐसे हैं जो छोटे-बड़े पैमाने पर युद्धरत हैं। पिछले सोलह साल में 97 देश ऐसे हैं जहां अशांति है। इसका कारण भुखमरी, महंगाई, धर्म या नस्ल के चलते पैदा होने वाली अशांति हो सकती है। पूरी दुनिया में पिछले डेढ़ दशक से अशांति बढ़ रही है और शांति दिनोंदिन कम होती जा रही है। इसके कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है। अगर पिछले साल यानी 2023 में हुई हिंसा के कारण हुई हानि की बात की जाए, तो वैश्विक अर्थव्यवस्था को 19.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 1612 लाख करोड़ रुपये) को नुकसान हुआ था। हिंसा और युद्ध में आर्थिक हानि के साथ-साथ मानवीय क्षति भी होती है जिसकी वजह से कार्यबल में कमी आती है। अगर हम विश्व में अशांति के दौर का विश्लेषण करें, तो सोलह साल पहले यानी सन 2008 के दिनों में आई वैश्विक मंदी के बाद से ही दुनिया में अशांति फैलनी शुरू हुई है। सन 2008 की वैश्विक मंदी ने कई देशों को पूरी तरह तबाह कर दिया था। जिसकी वजह इन देशों में न केवल रोजगार के अवसर कम हुए, गरीबी और महंगाई भी बेतहाशा बढ़ी जिसकी वजह से उन देशों में आंतरिक संघर्ष भी बढ़ा। इस आंतरिक संघर्ष ने उन गुटों को मजबूती प्रदान की जो पहले से ही वहां की सत्ता के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। इन संघर्षों ने युद्ध या गृहयुद्ध का रूप धारण किया, तो पलायन भी बढ़ा। आज हालात यह है कि दुनिया के 16 देशों में पांच प्रतिशत से अधिक आबादी विभिन्न देशों में पलायन कर चुकी है। विश्व में साढ़े नौ करोड़ से अधिक लोग अब या तो शरणार्थी हैं या अपने ही देश में एक इलाका छोड़कर दूसरे इलाके में रहने को मजबूर हो गए हैं। इन साढ़े नौ करोड़ विस्थापितों या शरणार्थियों का जीवन नारकीय है। विभिन्न संघर्षों और युद्धों में इस साल अब तक 2.3 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। पिछले ही साल 1.70 लाख लोग मारे जा चुके हैं। श्रीलंका, म्यांमार, बांग्लादेश, सीरिया, अफगानिस्तान, इराक जैसे तमाम देश आंतरिक और बाहरी अतिवादी गुटों या देशों के हस्तक्षेप की वजह संकटग्रस्त हैं। सबसे अशांत देशों में यमन, सूडान, दक्षिणी सूडान, अफगानिस्तान और यूक्रेन जैसे देश आते हैं। सवाल यह है कि सन 2008 की वैश्विक मंदी के आने पहले शांत रहने वाले इलाके अशांत क्यों हो गए। इसका कारण सिर्फ इतना है कि वैश्विक जगत में अपना वर्चस्व कायम करने की होड़ में लगे अमेरिका, रूस, चीन, तुर्किये, ईरान जैसे देशों ने आर्थिक मंदी के चलते कंगाली के कगार पर पहुंचे देशों की आर्थिक मदद की और बदले में अपना प्रभाव कायम कर लिया। नतीजा यह हुआ कि आर्थिक सहायता मिलने के बाद विरोधियों को दबाने के लिए इन दबंग देशों ने हथियार भी मुहैया कराए और नतीजा यह हुआ कि विरोधियों ने दूसरे खेमे संपर्क साधकर अपना हित साधा और देश अशांति के चक्रव्यूह में फंसता चला गया। दबंग देशों की कूटनीतिक चालों का नतीजा है कि आज दुनिया के 56 देश सक्रिय रूप से युद्धरत हैं।
युद्धों के मकड़जाल में क्यों फंसती जा रही दुनिया?
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