भारत के स्वाधीनता संग्राम में भगिनी निवेदिता का नाम बहुत आदर के साथ लिया जाता है। वैसे भगिनी निवेदिता भारत की नहीं थीं, लेकिन उन्होंने भारतीय दर्शन, सभ्यता और संस्कृति से प्रभावित होकर न केवल अपना देश छोड़ा, बल्कि अपने घर-परिवार को छोड़कर भारत आ गई थीं। जब वह भारय आई थीं, तब वह युवा थीं। उस समय की अन्य युवा लड़कियों की तरह अपना घर बसा सकती थीं, अपने देश में लोगों के काम आ सकती थीं, लेकिन उन्हें हमारे देश से प्यार किया, उसकी संस्कृति को प्यार किया। और भारत आ गईं। भगिनी निवेदिता का मूल नाम मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल था। वह आयरलैंड की रहने वाली थीं। भारतीय दर्शन से परिचित वह स्वामी विवेकानंद के माध्यम से हुई थीं। उन्होंने स्वामी विवेकानंद को देखा था। उन्होंने महसूस किया कि भारत के इस युवा साधु के चेहरे पर कितना तेज है।
इतना ज्ञान होते हुए भी उनमें अहंकार तो नाम मात्र को नहीं है। स्वामी विवेकानंद से प्रभावित निवेदिता भारत के कोलकाता शहर में आ गईं। एक दिन उन्होंने सुना कि स्वामी विवेकानंद किसी से कह रहे थे कि अनाथ बच्चों में भगवान बसता है। उसके लिए आश्रम होना चाहिए। वह आश्रम बनाने में जुट गईं। आश्रम के लिए चंदा मांगने वह एक कंजूस सेठ के पास गईं।
उन्होंने आश्रम के लिए चंदा मांगा, तो उसने कहा कि मैंने पैसा-पैसा जोड़ा है, तो मैं तुम्हें चंदा क्यों दूं। बार बार निवेदन करने पर उसने एक थप्पड़ निवेदिता के गाल पर जड़ दिया। निवेदिता ने थप्पड़ खाने के बाद कहा कि अब तो बच्चों के लिए कुछ दे दो। निवेदिता की सहनशीलता देखकर सेठ लज्जित हो गया। उसने चंदा देने के साथ-साथ निवेदिता से क्षमा मांगी।
अशोक मिश्र