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आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की बहुत बड़ी कीमत चुकाएगा समाज

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दुनियाभर में मशहूर टेक्नोलाजी कंपनी गूगल ने एक फीचर लांच किया है। नाम रखा है हेल्प मी राइट। अगर आपको अपने जीमेल का उत्तर किसी भी विषय पर लिखना है, तो यह फीचर आपकी पूरी मदद करेगा। अगर आपको किसी कंपनी से रिफंड वापस लेना है, तो इस फीचर पर आपको सिर्फ रिफंड टाइप करना होगा। यह फीचर आपके लिए एक ऐसा पत्र तैयार कर देगा जिसके लिए आपको काफी मेहनत करनी पड़ती। अगर आपको अपनी प्रेमिका या पत्नी को एक भावनात्मक प्रेम पत्र लिखना है, तो आपको घंटों तमाम शायरों की गजलें, कवियों की स्त्री प्रशंसा में लिखे गए गीत या मुक्तक याद करने पड़ेंगे। प्रेमिका या पत्नी की खूबसूरती की तमाम उपमाएं खोजनी या सोचनी पड़ेंगी। फिर शब्दों का चयन भी भावना के मुताबिक करना पड़ेगा। लेकिन गूगल का हेल्प मी राइट या ओपन एआई कंपनी का चैटबाट चैटजीपीटी मिनटों में प्रेमपगा पत्र लेकर आपको जीमेल पर या ह्वाट्सएप पर हाजिर हो जाएगा।

घंटों का काम मिनटों में हो जाए, वह भी बिना किसी गलती के। आपको देर से आने के बहाने खोजने हैं, यह फीचर मिनटों हजारों बहाने सुझा देगा। ऐसी स्थिति के लिए हमारे देश में एक कहावत बहुत मशहूर है ‘हर्र लगे न फिटकरी, रंग आए चोखा।’ लेकिन इस चोखेपन की कीमत जो वसूली जाएगी, वह मानवता के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं होगी। मानव सभ्यता के विकास क्रम में मनुष्य ने मशीनों का आविष्कार अपनी सहायता के लिए किया था। मानव समाज के इतिहास में पहिये और हथियार का आविष्कार बहुत ही क्रांतिकारी आविष्कार माना जाता है। एक बार पहिया का आविष्कार हो गया, तो कुम्हार के चाक से लेकर बैलगाड़ी और रथों के पहिये तक बना लिए गए। ये आविष्कार मनुष्य की सुविधा के लिए थे।

चाक से बर्तन बनाने की कला विकसित हुई, तो हथियार ने युद्ध को जन्म दिया। इन दोनों का मानव जीवन में क्रांतिकारी भूमिका रही है। आज जितना भी वैज्ञानिक आविष्कार है, उसके आधार में वही पहिया ही है। हवाई जहाज से लेकर अंतरिक्ष यान तक में घूमता पहिया किसी न किसी रूप में मौजूद है। लेकिन इक्सीसवीं सदी में कुछ ऐसे आविष्कार भी हुए जिन्होंने मनुष्य के जीन में परिवर्तन शुरू कर दिया है। अब इसी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को ही लीजिए। इसने मनुष्य से सोचने का काम छीनना शुरू कर दिया है। इसका प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर पड़ना  अवश्यंभावी है। अब जब एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से एक से बढ़कर एक कलाकृतियां मिनटों में उपलब्ध हो जाएंगी, तब कलाकारों को कौन पूछेगा।

कला में कौन रुचि ही लेगा। मनुष्य जब सोचने-समझने के काम से अपने को विरक्त कर लेगा, तो स्वाभाविक है कि उसके मस्तिष्क का विकास रुक जाएगा। इसका सबसे बढ़िया उदाहरण यह है कि आज किसी भी पांचवीं छठवीं के बच्चे से तेरह या सोलह का पहाड़ा (टेबल) पूछ लीजिए। वह शायद ही बता पाए, लेकिन मोबाइल हाथ में आते ही झट से बता देगा। अब हमने सोचने, याद रखने का काम मोबाइल, इंटरनेट आदि को सौंप दिया है। मस्तिष्क को हमने खाली कर दिया है।

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