पर्वतारोहण मनुष्य का सदियों पुराना शौक रहा है। हजारों साल से मनुष्य पर्वतों पर विजय प्राप्त करने का आकांक्षी रहा है। दुनिया में जितने भी पर्वत हैं, उनको पार करके दूसरी तरफ जाने का जज्बा शताब्दियों पुराना है। भारत में हिमालय पर्वत की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर चढ़ना प्राचीनकाल से ही दुरूह रहा है। जब दुनिया को पता चला कि एवरेस्ट की ऊंचाई दुनिया में सबसे ज्यादा है, तो इसके प्रति लोगों की रुचि बढ़ी। पर्वतारोहण जैसे दुस्साहसिक कार्य को जब खेलों में शुमार कर लिया गया, तो एवरेस्ट पर पर्वतारोहियों की भीड़ बढ़ने लगी। हालत यह हुई कि जैसे-जैसे एवरेस्ट पर भीड़ बढ़ती गई, वैसे-वैसे हादसे बढ़ते गए। इसी साल एवरेस्ट पर गए 12 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इसके लिए नेपाल को जिम्मेदार माना जा सकता है।
दरअसल, नेपाल की ओर से एवरेस्ट पर जाने वाले ज्यादातर पर्वतारोही कम अनुभवी और कई बार पर्वतारोहण के योग्य भी नहीं होते हैं। नेपाल अपनी फीस वसूलने के बाद भारी संख्या में लोगों को परमिट दे देता है। नेपाल को इससे काफी आय होती है। नेपाल की आय का मुख्य स्रोत भी पर्यटन ही है। यही वजह है कि वह पर्वतारोहियों को आकर्षित करने के लिए तमाम नियमों में छूट देकर लोगों को एवरेस्ट पर चढ़ाई करने को भेजता है। एक पर्वतारोही को इजाजत देने यानी परमिट देने की फीस नौ लाख रुपये है।
नौ लाख रुपये अदा करके कोई भी नेपाल से परमिट हासिल कर सकता है। वहीं चीन के रास्ते से कैलाश मानसरोवर जाने के लिए कड़ी शर्तों का पालन करना होता है। चीन सिर्फ प्रशिक्षित लोगों को ही पर्वतारोहण की इजाजत देता है। एक पर्वतारोही पर लगभग 22 लाख रुपये खर्च आते हैं जिसमें उनके लिए भोजन, आक्सीजन गैस, गाइड और ट्रैवलिंग के खर्चे समाहित होते हैं। भारी संख्या में पर्वतारोहियों के एवरेस्ट पर पहुंचने से वहां का पर्यावरण बदल रहा है। वर्ष 1979 से अब तक एवरेस्ट के तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो गई है। इसकी वजह से एवलांच की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है। वैसे तो एवरेस्ट पर जाने का सीजन खत्म हो चुका है, लेकिन इसी साल एवरेस्ट पर गए पांच लोग अभी तक लापता हैं। वर्ष 2014 में एवरेस्ट पर आए बर्फीले तूफान में 16 लोगों की मौत हो गई थी। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब तापमान बढ़ने से बर्फ पिघलती है, तो वह नीचे की ओर बढ़ती है। पिघली हुई बर्फ झीलों में भरने लगती है।
जब इस पर सूरज की किरणें पड़ती हैं, तो वहां पर भाप बनने लगती है जिसकी वजह से तेज हवाएं चलने लगती हैं। यही हवाएं बाद में बर्फीले तूफान का रूप ले लेती है। ऐसी स्थिति में एवरेस्ट पर जाने वालों की संख्या में यदि कमी नहीं हुई तो एक दिन वह भी आएगा, जब पूरे हिमालय की पारिस्थितिकी तंत्र बदल जाएगा। पारिस्थितिकी तंत्र बदलने का मतलब है कि नेपाल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, असम, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश आदि को नई मुसीबत में डालना। पहाड़ वैसे भी इंसानी हस्तक्षेप की वजह से पिघल रहे हैं। नदियों और समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है, जो इंसानी सभ्यता के लिए खतरा बन सकता है।
संजय मग्गू