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कला-संस्कृति के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभाता सूरजकुंड मेला

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संजय मग्गू
भारत में हाट-बाजार और मेलों का बहुत महात्म्य रहा है। मेले और हाट-बाजार सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण रहे हैं। सैकड़ों साल पहले जब आज की तरह बड़े-बड़े बाजार और दुकानें नहीं हुआ करती थीं, तब मानव जीवन की धुरी की तरह काम करते थे मेले और हाट-बाजार। इन मेलों में जहां विभिन्न संस्कृतियों का समागम होता था, लोग एक दूसरे के रीति-रिवाजों, खान-पान, वेशभूषा से परिचित होते थे, वहीं अपनी संस्कृति का भी प्रदर्शन करते थे। सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का सबसे बेहतरीन उदाहरण हमारे देश के ग्रामीण अंचलों में लगे वाले मेले और हाट होते थे। आगामी सात फरवरी से फरीदाबाद जिले के अरावली पर्वतमाला के दक्षिणी रिज पर 38वां अंतर्राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला आयोजित होने जा रहा है। इस मेले में देश-विदेश से आने वाले हस्तशिल्पी अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। इस दौरान देश के विभिन्न भागों और विदेश से आने वाले कलाकार अपनी लोककला का भी प्रदर्शन करते हैं। यह मेला अपनी कला और संस्कृति के प्रचार-प्रसार का एक बेहतरीन अवसर उपलब्ध कराता है। इस मेले में आने वाले लोग विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों से परिचय प्राप्त करते हैं। खान-पान, पहनावा, आभूषण, लोक कला, नृत्य और संगीत आदि के माध्यम से लोग एक दूसरे का परिचय प्राप्त करते हैं। वैसे तो सूरजकुंड में अंतर्राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले का आयोजन 38 साल पहले हुआ था, लेकिन सूरज कुंड नामक स्थान बहुत ही ऐेतिहासिक महत्व रखता है। दिल्ली-हरियाणा की सीमा पर बसा मगरबानी गांव से लेकर तुगलकाबाद तक यानी सूरज कुंड के चारों ओर पुरापाषाण काल के अवशेष बिखरे हुए हैं। इन इलाकों में जो प्राचीन अवशेष पाए गए हैं, वह ईसा पूर्व दस हजार साल पुराने बताए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि सूरज कुंड का निर्माण दसवीं शताब्दी में तोमर वंश के राजा सूरजपाल ने किया था। वह सूर्य के उपासक थे। कहा जाता है कि तोमर वंश के शासकों ने दिल्ली और उसके आसपास लगभग 457 वर्षों तक शासन किया था। इसके बाद दिल्ली पर चौहानों का शासन कायम हुआ था। सूरज कुंड मेला क्षेत्र लगभग चालीस हेक्टेयर में बना है। पुरातत्व विभाग को यहां एक सूर्य मंदिर का अवशेष भी मिला है। इस वजह से सूरजकुंड के आसपास का इलाका ऐतिहासिक महत्व का हो जाता है। केंद्र और प्रदेश सरकार ने इस स्थल को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए कई उपाय किए हैं। देश-विदेश के लोगों को सूरजकुंड के ऐेतिहासिक महत्व से परिचित कराने के लिए ही अंतर्राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले का आयोजन शुरू किया गया था। इस मेले के माध्यम से देश-विदेश के लोग हरियाणा की बोली-बानी, खानपान और पहनावे से परिचित होते हैं।

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