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स्वामी विवेकानंद और नगरवधु

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बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
अजीत सिंह का जन्म 16 अक्टूबर 1861 को उत्तरी राजस्थान के अलसीसर के शेखावत रियासत में हुआ था। इनके पिता का नाम छत्तू सिंह था। अजीत सिंह को खेतड़ी के राजा फतेह सिंह ने गोद लिया था। राजा अजीत सिंह को स्वामी विवेकानंद का मित्र और शिष्य बताया जाता है। राजा अजीत सिंह ने ही स्वामी विवेकानंद को शिकागो में आयोजित धर्म संसद में जाने के लिए प्रेरित किया और संसाधन मुहैया कराए। कहा तो यह भी जाता है कि राजा अजीत सिंह ने स्वामी विवेकानंद के लिए सौ रुपये मासिक वजीफा बांध दिया था जो विवेकानंद की मां की मृत्यु तक कायम रहा। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि नरेंद्र नाथ को नाम भी सच्चिदानंद की जगह विवेकानंद राजा अजीत सिंह ने सुझाया था। एक बार की बात है। राजा अजीत सिंह के बेटे जय सिंह के जन्मोत्सव में शामिल होने के लिए स्वामी विवेकानंद खेतड़ी आए। जन्मोत्सव में होने वाले संगीत कार्यक्रम में कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए एक नगरवधु भी आई हुई थी। वह जब कार्यक्रम प्रस्तुत करने आई तो स्वामी विवेकानंद को बुरा लगा और वह उठकर अपने कमरे में चले गए। स्वामी जी को उठकर जाता देखकर नर्तक सोचने लगी कि यह कैसा साधु है। अपने ज्ञान और तेज के लिए स्वामी जी असहज महसूस कर रहे हैं और मुझ जैसी नगरवधु का सामना करने से डर रहे हैं। उसने कार्यक्रम प्रस्तुत करना शुरू किया और गाने लगी-प्रभु जी, मेरे अवगुण चित न धरो। यह सुनकर स्वामी जी को लगा कि मैंने वहां से उठकर गलत किया। माना कि उसमें कुछ अवगुण हैं, लेकिन मुझे उससे डरने की क्या जरूरत है। यह सोचकर स्वामी विवेकानंद उस कार्यक्रम में पहुंचे और उन्होंने संगीत कार्यक्रम का भरपूर आनंद लिया। वैसे दिल से स्वामी जी निर्मल थे।

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