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माता-पिता भगवान का रूप, वृद्धावस्था में रखें उनका विशेष ध्यान

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कैलाश शर्मा
ग्रेटर नोएडा के एक मकान में एक बुजुर्ग महिला अकेली रहती थी उसके बेटा बहू गाजियाबाद के वैशाली में रहते थे एक दिन उसकी मृत्यु हो गयी उसका शव मकान में 20 दिन तक पड़ा रहा। पुलिस ने बताया कि महिला बीमार होने के बाद चल फिर नहीं सकती थी। खाना पानी नहीं मिलने से उसकी मौत हुई है। जांच से पता चला कि 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला से उसके बेटे की 4 महीने से कोई बातचीत नहीं हुई थी। देश में यह पहली घटना नहीं है आए दिन ऐसी घटनायें देखने व सुनने को मिलती हैं।
मां बाप के लिए उनके बच्चे ही उनकी पूरी दुनिया होती है और बच्चों के लिए भी उनके मां बाप सब कुछ होते हैं। शायद इसलिए ही मां-बाप को भगवान का दर्जा दिया गया है। बचपन में हर बच्चे के लिए उसके पेरेंट्स से बढ़कर कुछ भी नहीं होता है। बच्चे की जरूरतें और उनकी खुशियां हर मां-बाप बखूबी समझते हुए निस्वार्थ भाव से पूरा करते हैं। अपनी जीवन भर की कमाई बच्चों को बड़ा करने,पढ़ाने,उसको रोजगार दिलाने,उसकी शादी करके गृहस्थ जीवन बसाने आदि में लगा देते हैं या यूं कहें कि वे अपने जीवन के मूल्यवान दिनों को अपने बच्चे की परवरिश और खुशहाली में लगा देते हैं। वहीं जब मां बाप जिंदगी के अंतिम पड़ाव वृद्धावस्था की ओर अग्रसर होते जाते हैं तो ऐसे समय में बच्चों को अपने बूढ़े मां-बाप बोझ लगने लगते हैं। उनको अकेला छोड़ देते हैं। कुछ उनको वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं। अब प्रश्न यह है कि बेटे ऐसा क्यों करते हैं? यह एक गंभीर विषय है ऐसा क्यों हो रहा है इस पर विचार करना चाहिए। आजकल के बच्चों की सोच बड़ी हाई-फाई होती है। सब अमीरों वाले सपने देखते हैं। इसी के चलते बच्चे अपने माता-पिता को कोई अहमियत नहीं देते। जिस बुढ़ापे में बच्चों को माता-पिता का सहारा बनना चाहिए उस बुढ़ापे में वह उन्हें अकेला छोड़ कर देश विदेश में दूर नौकरी करने चले जाते हैं और बाद में वहीं बस जाते हैं और उनसे दूरी बना लेते हैं। कई बार देखा गया है की मां-बाप की मृत्यु हो जाने पर वह उनके दाह संस्कार में भी नहीं आ पाते हैं। कई बेटे तो एक ही शहर में अपने मां-बाप को छोड़कर उसी शहर में अलग रहते हैं। यह सब देख कर बहुत दुख होता है। ऐसा क्यों हो रहा है इस पर विचार करना चाहिए। ऐसी स्थिति पैदा होने में कुछ हद तक माता-पिता भी जिम्मेदार हैं। माता-पिता अपने बच्चों को समय देने में कहीं ना कहीं पीछे हैं। सभी पैसों के पीछे भागते नजर आते हैं। इन्ही पैसों के चक्कर में माता-पिता अपने बच्चों को समय नहीं दे पा रहे हैं और वह बिगड़ते चले जा रहे हैं। आजकल माता-पिता की खुद आपस में ही नहीं बनती। दिन पर दिन तलाक बढ़ रहे हैं। बच्चे को बचपन से ही अगर यह सिखाया जाए कि उनके लिए उनके माता-पिता की क्या अहमियत है तो शायद बच्चों के लिए सबसे अहम उनके माता-पिता ही हों। बच्चों को बचपन से ही प्राचीन हिंदू संस्कृति,परंपरा, संस्कार,बुजुर्गों के महत्व के बारे में बताना चाहिए। पूजा पाठ,माता-पिता की सेवा करने की आदत डालनी चाहिए ताकि माता पिता बेटे के बीच में आत्मीय रिश्ता बना रहे, वह माता-पिता को भगवान तुल्य माने और उन्हें कभी न भूलें। वृद्धावस्था जिंदगी का वह अंतिम पड़ाव है जिसमें मां बाप को सिर्फ अपनों का प्यार चाहिए होता है। उनको केवल अपने बच्चों का साथ चाहिए होता है कि वो हमेशा उनके पास रहें ताकि वो अपनी बूढी आंखों से उन्हें फलते-फूलते देखते रहें। जिसके सहारे वे अपने बुढ़ापे की नैया को पार लगा सकें। वैसे भी वृद्ध अवस्था में बुजुर्ग मां-बाप की शारीरिक मानसिक स्थिति  कमजोर हो जाती है। (आर्थिक स्थिति पर तो पहले ही बच्चे कब्जा कर लेते हैं) उनको ब्लड प्रेशर,हृदय,पैरों से चलने में परेशानी आदि रोग हो जाते हैं। हड्डियां कमजोर हो जाती है। पाचन क्रिया कमजोर हो जाती है। शेष जिंदगी जीने के लिए उनको दवाइयों और दो रोटी पर निर्भर रहना पड़ता है। अगर यह भी मान सम्मान से ना मिलें तो मां बाप के मन मस्तिष्क पर क्या गुजरती होगी, बेटों को इसकी कल्पना करनी चाहिए। जो बेटे वृद्धावस्था में अपने मां-बाप का पूरा ध्यान रखते हैं,उनका मान सम्मान करते हैं,उनकी हर जरूरत को पूरा करते हैं,उनसे बातचीत करने व उनके पास बैठने के लिए समय निकालते हैं वे बेटे वंदनीय हैं,सम्माननीय हैं ऐसे होनहार बेटों को अपने मां बाप की दुआ के रूप में भरपूर आशीर्वाद मिलता है,वे हमेशा फलते फूलते हैं। ईश्वर की भी उन पर विशेष कृपा रहती है। इसके विपरीत जो वृद्ध व बुजुर्ग मां-बाप को बोझ समझते हैं, उनको मान सम्मान देना तो दूर उनका तिरस्कार करते हैं,उन्हें शेष जिंदगी जीने के लिए अकेला छोड़ देते हैं। वृद्ध आश्रम छोड़ आते हैं। उनको ईश्वर कभी माफ नहीं करते हैं। वे कभी खुश नहीं रह सकते हैं। ईश्वर का न्याय है कि जैसे को तैसा। हर बेटे को समझना सोचना चाहिए कि
रुलाकर अपने मां-बाप को,
खुश तुम भी रह नहीं पाओगे,
करोगे जैसा व्यवहार उनसे,
कल तुम भी अपनी औलाद से, वही पाओगे।
इससे बचने के लिए ईश्वर से यही प्रार्थना करनी चाहिए कि ईश्वर! बस इतना काबिल बनाना मुझे कि जिस तरह मेरे मां बाप ने मुझे खुश रखा,मैं भी उन्हें बुढ़ापे में वैसे ही और उससे भी ज्यादा उनको खुश रख सकूं।
ध्यान रखें! जिसके मां बाप खुश वे दुनिया के सबसे अमीर और संपन्न लोग होते हैं,मां-बाप ईश्वर का दूसरा रूप होते हैं, उनके कदमों में स्वर्ग होता है। उनके आशीर्वाद से हमें हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। उनका मान सम्मान खासकर बुढ़ापे में करना सभी का पहला धर्म होना चाहिए।

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