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देश की मीडिया को भी अब जिम्मेदार हो जाना चाहिए

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न्यूज ब्रॉडकास्टिंग एंड डिजिटल स्टैंडर्ड अथॉरिटी यानी एनबीडीएसए ने देश के तीन नामी चैनलों के खिलाफ टिप्पणी करते हुए उन पर जुर्माना लगाया है। इन तीनों चैनलों पर आरोप यह है कि इन्होंने अपने शो के माध्यम से समाज में नफरत फैलाई और एक समुदाय विशेष की छवि बिगाड़ने की कोशिश की। एनबीडीएसए का यह कहना बिल्कुल जायज है कि किसी एक व्यक्ति के कृत्य के चलते उसके पूरे समुदाय या धर्म को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

मीडिया में पिछले एक दशक से एक समुदाय विशेष की छवि बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है। आरोप है कि श्रद्धा वालकर हत्याकांड में इन तीन टीवी चैनलों ने समुदाय विशेष को टारगेट करने का प्रयास किया था। एनबीडीएसए के अध्यक्ष और सुप्रीमकोर्ट के पूर्व जस्टिस एके सीकरी ने इन चैनलों को चेतावनी देते हुए कहा कि भविष्य में लव जिहाद शब्द का उपयोग बेहद सावधानी के साथ करना चाहिए। इसका गैर जिम्मेदाराना उपयोग से देश के संघीय ढांचे को खतरा हो सकता है। पिछले कई सालों से समाज में सांप्रदायिक विद्वेष फैलाया जा रहा है। कहीं हिंदू-मुस्लिम समुदाय को आपस में लड़ाने की कोशिश हो रही है, तो कहीं मॉबलिंचिंग करके निर्दोषों की हत्याएं की जा रही हैं।

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ऐसा नहीं है कि इसके लिए एक समुदाय विशेष के लोग ही दोषी या जिम्मेदार हैं। असल में दोनों समुदाय के कुछ अराजक तत्व माहौल को बिगाड़ने का प्रयास कर रहे हैं। हेट स्पीच की घटनाएं काफी बढ़ गई हैं। सरकारों और अदालतों की सख्ती की वजह से इन दिनों हेट स्पीच पर अंकुश लगा हुआ है। लेकिन डेढ़ दो वर्ष पहले तो लगभग रोज कहीं न कहीं हेट स्पीच के समाचार मीडिया में आते थे। इसमें दोनों ओर के छुटभैये नेता और धर्म गुरु शामिल होते थे। इन अराजक तत्वों ने कुछ घटनाओं को अंजाम भी दिया ताकि समाज में वैमनस्यता फैले और माहौल खराब हो। समाचार पत्रों और टीवी चैनलों पर जानबूझकर भड़काऊ बयानबाजी दिखाई जाती थी।

अफसोस की बात यह है कि जाने-अनजाने जिम्मेदार मीडिया भी अराजक तत्वों की तरह व्यवहार करने लगी थी। केंद्र और राज्य सरकारों के सख्त रवैये के चलते इधर एक-डेढ़ साल से अंकुश लगा है। यदि हम सामाजिक रूप से देखें, तो देश की जनता को इन धार्मिक झगड़ों से कुछ लेना-देना नहीं होता है। आम जनता अपनी ही समस्याओं में इतनी उलझी हुई है कि उसके पास इन झगड़ों में शामिल होने का समय ही कहां होता है। रोजी-रोटी और घरेलू समस्याएं ही एक आम आदमी को इतना तोड़ देती हैं कि वह इनके अलावा कुछ और सोच भी नहीं पाता है। महंगाई, बेरोजगारी, भुखमरी जैसी समस्याएं आज हर आदमी के सामने मुंह बाए खड़ी हैं। वह इनसे निपटे या फिर फालतू के झगड़े में फंसे।

Sanjay Maggu

-संजय मग्गू

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