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भीषण सड़क दुर्घटनाओं से जूझते देश के पहाड़

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भारत में प्रति वर्ष जितने लोग विभिन्न बिमारियों के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं, तकरीबन उतनी ही संख्या में अकेले सड़क दुर्घटनाओं के कारण अपनी जान गंवा देते हैं। मैदानी इलाकों के साथ साथ पहाड़ी राज्यों में भी प्रति वर्ष अलग अलग सड़क दुर्घटनाओं में बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है। पहाड़ी राज्य उत्तराखंड इसका उदाहरण है। जहां वर्ष 2021 में 1405 सड़क हादसे (820 मृत्यु व 1613 घायल), 2022 में 1674 सड़क हादसे (1042 मृत्यु व 1613 घायल) 05 जून, 2022 को यमुनोत्री हाईवे पर डामटा के पास बस हादसे में 26 यात्रियों की मौत, 04 अक्टूबर, 2022 को पौड़ी के सिमड़ी में बस हादसा हुआ जिसमें 33 लोगों की मौत हुई, 18 नवम्बर, 2022 को चमोली के जोशीमठ में सूमों हादसा और 12 यात्रियों की मौत। ऐसे कई हादसे हैं, जिनके बारे में सोचकर ही रूह कांपने लगती है। 2023 में भी सड़क हादसों का क्रम जारी है।

पहाड़ों पर अधिकांश दुर्घटनाओं का कारण ओवरस्पीड, नशा करके गाड़ी चलाना, यायातायात के नियमों का पालन न करना, आदि पाया गया है। सरकार द्वारा इस पर लगाम हेतु पहल भी की गयी है। परिवहन विभाग द्वारा भी निगरानी बढ़ाई गई है, लेकिन इसके बावजूद भी हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। ऐसे में यह परिवहन विभाग व राज्य सरकार के सामने चुनौती बनी हुई है कि आखिर साल दर साल बढ़ रहे सड़क हादसों पर कैसे लगाम कसी जाए?

राज्य में हर दिन सड़कें खून से लाल हो रही हैं। इसके लिए ओवरस्पीड व गलत दिशा में वाहनों का चलना व यातायात के नियमों का पालन करना ही शामिल नहीं है। बल्कि कई जगह सड़कों की खराब हालत भी जिम्मेदार है। जर्जर हो चुकी सड़कों के चलते सड़क दुर्घटनाओं से संबंधित खबरों का न्यूजपेपर में आना आम सी बात हो गई है। दरअसल सड़कें बनाते समय सही मानकों का पालन नहीं किया जाता है। जिसके कारण सड़कों की हालत खराब रहती है। यदि सही मात्रा में मटेरियल को मिलाकर कार्य किया जायेगा तो इसके जल्द खराब होने की संभावना नहीं होती है। वर्तमान समय में बनने वाली सड़कें बारिश की पहली बूंद में ही दम तोड़ देती हैं।

अलबत्ता कागजों में संबंधित कार्यों की वाहवाही जरूर होती है। वही दूसरी ओर पहाड़ों पर सिंगल लेन का होना व रोडों पर गाड़ियों का जमावड़ा एवं अतिक्रमण भी इन दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार साबित हो रहे हैं। पहाड़ों में हर ग्राम तक सड़क पहुंचाने के चक्कर में मुख्य सड़क से जोड़ने के लिए हजारों लिंक रोड बनायी जा रही हैं। जिसके लिए पहाड़ों पर ब्लास्टिंग व मशीनों से पहाड़ों का कटान किया जाता है। इससे पर्वत कमजोर हो रहे हैं। साथ ही बदलते मौसम की मार भी सड़कों पर सफर को जोखिम भरा बना रही है।

इस संबंध में नैनीताल स्थित धारी ब्लॉक के सेलालेख गांव के बुजुर्ग खजान चन्द्र मेलकानी बताते हैं कि ‘पहाड़ों के लिए सड़कों का महत्व केवल यात्राओं के लिए ही नहीं, वरन् आजीविका के लिहाज से भी अत्यन्त आवश्यक है। पहाड़ों में उत्पादित सभी वस्तुएं चाहे वह साग-सब्जी, फल, मसाले या औषधी पौध ही क्यों न हो, इनका उपयोग पूर्ण रूप से पहाड़ों पर इनके स्थानों तक पहुंचना होता है, जहां इनकी मांगें होती हैं। इसके लिए परिवहन सबसे सशक्त माध्यम होता है। लेकिन अक्सर अधिक वर्षा के चलते सड़कें ध्वस्त हो जाती हैं जिसको बनने में काफी समय लगता है। इस दौरान पर्वतीय समुदाय को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

चाहे वह इन उत्पादों को उन स्थानों पर भेजने में हो या फिर मैदानी क्षेत्रों से पर्वतीय क्षेत्रों को भेजी जाने वाली दैनिक आवश्यकता की सामग्री क्यों न हो। काश्तकार काफी मेहनत से अपने खेतों में उत्पादन करते हैं और यदि वह समय से बाजार में न जाए तो उनकी मेहनत व्यर्थ सी हो जाती है। इससे परिवारों की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है।

नैनीताल स्थित ओखलकाण्डा ब्लॉक के ग्राम नाई के बस चालक मनोज सिंह का कहना है कि शहरों में सड़के तंग तथा भरी हैं जबकि पहाड़ों की सड़कें मरी पड़ी हैं। बरसात में सड़कों पर बने बड़े बड़े गढ्ढों में पानी भरने से इसका सही अंदाज नहीं हो पाता है, जिससे न केवल वाहन चालकों और यात्रियों को शारीरिक व मानसिक कष्ट होती है, बल्कि वाहन की भी दुदर्शा हो जाती है। पहाड़ों में कुछ किमी के सफर को तय करने में कई घंटे लग जाते हैं। हालांकि सरकार द्वारा दावा किया जा रहा है कि सड़कों की हालत में सुधार हो रहा है, पर जमीनी हकीकत कुछ और होती है।

गिरीश बिष्ट

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