कहा जाता है कि यदि शासक जनकल्याण में रत रहे, तो उस देश या प्रदेश की प्रजा भी सुखी रहती है, फलती-फूलती है और शासक के अच्छे कार्यों का उस पर सकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है। हर शासक अपनी प्रजा का एक तरह से प्रतिबिंब ही होता है। यथा राजा तथा प्रजा। यही वजह है कि जिन राज्यों या देश का शासक अच्छा होता है, वहां का वातावरण भी खिला-खिला रहता है। एक बार की बात है। किसी राज्य का राजा अपनी प्रजा का बहुत ख्याल रखता था। जब जरूरत होती, तो वह अपनी प्रजा की सहायता भी किया करता था। एक बार उसके मन में खयाल आया कि पता किया जाए कि उसमें कौन सा दोष है?
इसके लिए उसने अपने आसपास रहने वालों से पूछा, लेकिन सबने उसे अच्छा ही बताया। वह बहुत परेशान हुआ कि कोई उसके अवगुण बताने को तैयार नहीं है। वह एक ऐसे आदमी की तलाश में रहने लगा जो उसके अवगुण बता सके। एक दिन उसकी मुलाकात एक संत से हुई। उसने जब संत से अपना अवगुण जानने का मार्ग पूछा, तो संत ने कहा कि शासन का प्रभाव हर चीज पर पड़ता है। राजा चुप रहा, लेकिन संत की बात से सहमत नहीं हुआ। उसने एक फल लिया और एक पथिक को देकर पूछा कैसा है? पथिक ने फल चखकर कहा कि बहुत मीठा है।
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इसके बाद राजा ने अपनी प्रजा पर खूब अत्याचार करना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों में जनता त्राहि-त्राहि कर उठी। लोग परेशान हो गए। एक दिन राजा ने एक फल पथिक को चखने को दिया, तो उसने मुंह बनाते हुए कहा कि बहुत कड़वा। राजा ने भी फल चखा, मीठा माना जाने वाला फल वाकई कड़वा था। यह देखकर राजा को संत की बातों में सच्चाई नजर आई। उसने फिर प्रजा का भला करना शुरू कर दिया।
–अशोक मिश्र
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