आज पूरी दुनिया में क्रिसमस मनाया जा रहा है। लोग घरों में क्रिसमस ट्री सजाकर ईसा मसीह का जन्म मनाते हैं। ईसा मसीह ने अपने शिष्यों और समर्थकों से हमेशा यही कहा कि किसी को उपदेशदेने से बेहतर है कि उसकी मदद की जाए। यदि कोई रोगी है, तो उसे निरोगी बनाया जाए। सत्य, अहिंसा और प्रेम से सभी बुराइयों को दूर किया जा सकता है। लेकिन बाद में क्रिसमस के दिन सेंटा क्लॉज की कथा आ जुड़ी।
लोगों ने सेंटा क्लॉज को इस तरह अपना लिया, मानो क्रिसमस का ही एक अंग हो। दरअसल, 280 ईसा पूर्व तुर्की में एक संत थे। नाम था सांता निकोलस। वह अपनी पत्नी के साथ उत्तर ध्रुव के इलाके में रहते थे। उन्होंने एक ऐसी परंपरा की शुरुआत की जो दुनिया में अपनी तरह की अजूबा था। वैसे तो दुनिया के सभी धर्मों में दान की एक लंबी परंपरा चली आ रही है। हिंदुओं में भी दान की परंपरा है।
लोग अपनी इच्छा से मंदिरों और गरीबों को रुपये-पैसे, अनाज और अन्य वस्तुएं दान में देते हैं। मुस्लिम धर्म में भी मस्जिदों और मदरसों के साथ-साथ गरीबों को दान देने की परंपरा है। सिख धर्म भी इससे अछूता नहीं है। गुरुद्वारों और गरीबों को अपनी कमाई का एक हिस्सा दान के रूप में देने की प्रथा है। सांता निकोलस इस मायने में अलग हैं कि उन्होंने दान की जगह उपहार देने की परंपरा की शुरुआत की। चुपके से किसी के घर में उसकी इच्छित वस्तु को रख जाना और किसी को पता भी न चलने देना,यह बहुत बड़ी बात है।
जब हम किसी को दान देते हैं, तो अपनी मर्जी के मुताबिक देते हैं। भले ही उस व्यक्ति को उसकी जरूरत हो न हो। लेकिन सांता निकोलस जिसको भी उपहार देते थे, वह उसकी जरूरत की वस्तु होती थी। व्यक्ति जिस वस्तु की कामना करता था। उपहार देते भी थे तो चुपके से ताकि उपहार पाने वाला लज्जित भी न हो।
-अशोक मिश्र