Friday, November 22, 2024
14.1 C
Faridabad
इपेपर

रेडियो

No menu items!
HomeEDITORIAL News in Hindiराजनीति में अब नैतिकता के लिए नहीं बची कोई जगह

राजनीति में अब नैतिकता के लिए नहीं बची कोई जगह

Google News
Google News

- Advertisement -

इसी को राजनीति कहते हैं। यह बहुत पुरानी कहावत है कि राजनीति में न कोई स्थायी शत्रु होता है, न कोई स्थायी मित्र। कल तक बिहार में लालू और नीतीश कुमार गलबहियां डाले एक दूसरे के साथ लंबी राजनीतिक लड़ाई लड़ने की कसमें खा रहे थे। आज दोनों में ‘राजनीतिक तलाक’ की नौबत आ गई है। जिस तरह तलाक के अंतिम पायदान पर पहुंचे मियां-बीवी एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं, एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं, ठीक वैसा ही समां इन दिनों बिहार में देखने को मिल रहा है। बात 14 अप्रैल 2014 की है।

पलटीमार के नाम से विख्यात नीतीश कुमार ने घोषणा की थी कि हम रहें या मिट्टी में मिल जाएं, आप लोगों (भाजपा) के साथ अब भविष्य में कोई समझौता नहीं होगा। लेकिन तीन साल बाद ही 2017 में भाजपा के साथ गठबंधन करके नीतीश कुमार ने बिहार में सरकार बनाई और मुख्यमंत्री बने। बाद में वे फिर गठबंधन तोड़कर एनडीए में आए। इसके बाद नीतीश कुमार ने फिर पाला बदला और कहा कि मैं जीवन में कभी भाजपा के साथ समझौता नहीं करूंगा। 13 अप्रैल 2022 को अमित शाह ने कहा था कि अब नीतीश कुमार के लिए भाजपा के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं। लेकिन यह वही भाजपा है जो अब एक बार फिर नीतीश कुमार को अपने पाले में करने को बेचैन नजर आती है।

ऐसा लगता है कि भाजपा अपने सारे दरवाजे खोलकर बैठी है नीतीश कुमार के लिए। यह भी हो सकता है कि कल जब आप यह पढ़ रहे हों, तब तक नीतीश कुमार भाजपा की गोद में बैठ चुके हों और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की तैयारी में हों। राजनीति में कुछ भी हो सकता है। इधर, पिछले कुछ दशकों से राजनीति में शुचिता का अभाव नजर आने लगा है। चाल, चरित्र और चेहरा की बात कहकर शुचिता की राजनीति करने वाली भाजपा ही नहीं, सभी दलों ने नैतिकता को तिलांजलि दे दी है। कांग्रेस, सपा, बसपा, आरजेडी, जेडीयू सहित देश की बाकी सभी पार्टियों में भी कोई नैतिकता नजर नहीं आती है।

कौन कब किससे गठबंधन करके सरकार बना लेगा या किस दल के कितने विधायक, सांसद टूटकर दूसरे दलों में चले जाएंगे, इसका कोई भरोसा नहीं रह गया है। आजादी के बाद से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी युग तक नेता अपने चरित्र और पार्टी के सिद्धांतों पर अटल रहते थे। जोड़-तोड़ की राजनीति नहीं होती थी। दूसरे दलों में सेंध लगाकर अपनी सरकार बनाने की मानसिकता में विपक्ष और सत्ता पक्ष नहीं रहते थे। इसे बहुत खराब माना जाता था। लेकिन जैसे-जैसे नेताओं का पतन होना शुरू हुआ, तो उसकी कई सीमा ही नहीं रही।

नीतीश कुमार, रामबिलास पासवान जैसे नेताओं को मौसम विज्ञानी की उपाधि इसलिए दी गई थी। रामबिलास पासवान तो हवा का रुख देखकर सत्ताधारी दल से गठबंधन की फिराक में रहते थे। मान लीजिए, कल नीतीश कुमार भाजपा के खेमे में चले जाते हैं, तो वे राजद की पोल खोलेंगे, तेजस्वी यादव को बुरा बोलेंगे। भाजपा छोड़कर जब महागठबंधन में आए थे, तब भी उन्होंने यही किया था।

-संजय मग्गू

- Advertisement -
RELATED ARTICLES
Desh Rojana News

Most Popular

Must Read

UP News: सहारनपुर में शताब्दी एक्सप्रेस पर पथराव

21 नवंबर को सहारनपुर जिले में नई दिल्ली से देहरादून जाने वाली शताब्दी एक्सप्रेस पर अज्ञात हमलावरों ने पथराव किया। इस घटना में ट्रेन...

PM Modi: भारत कभी ‘विस्तारवादी मानसिकता’ के साथ आगे नहीं बढ़ा: मोदी

PM Modi Asserts India Has Never Followed Expansionist Mentality: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 नवंबर को गुयाना की संसद के विशेष सत्र को संबोधित...

Recent Comments