धन-संपत्ति से नहीं मिलता सच्चा सुख
अशोक मिश्र
हमारे देश में प्राचीन काल से ही धन-संपत्ति को हाथ की मैल माना जाता था। मतलब यह कि धन-संपत्ति कभी किसी की स्थायी नहीं रही। वह आती-जाती रहती है। बस, यह आदमी ही है कि अपनी धन-संपदा पर अभिमान करता फिरता है। यह सब माया मोह है। इसके पीछे भागने से सच्चा सुख नहीं मिलता है। सच्चा सुख कहीं और ही जगह पर होता है और इंसान उसकी खोज में गलत जगहों पर भटकता रहता है। वह सच्चा सुख धन-दौलत में ही खोजता रहता है। एक बार की बात है। किसी जगह पर एक संत रहते थे। वह लोगों को सेवा, सद्भाव और प्रेम की शिक्षा दिया करते थे। उसी नगर में एक सेठ रहता था। वह काफी अमीर था, लेकिन उसे अपने धन पर काफी अभिमान था। एक बार वह संत के पास पहुंचा और बोला, मुझे सच्चे सुख की तलाश है। यदि कोई मुझे सच्चे सुख दिला दे, तो मैं उसे बहुत सारा धन दे सकता हूं। संत ने पलभर सोचा और फिर मुस्कुराते हुए बोले, अगर सच्चा सुख हासिल हो जाए, तो आप और क्या कर सकते हैं? सेठ ने कहा कि मैं उसे अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा उसे दे सकता हूं। तभी संत की नजर उसके हाथ पर पड़ी। उसने अपने हाथ में एक पोटली ले रखी थी जिसमें हीरे-जवाहरात और रत्न भरे पड़े थे। तभी अचानक संत उस पोटली को छीनकर भागे। सेठ ने उनका पीछा किया। काफी दूर भागने पर सेठ थककर बैठ गया। उसे रत्नों की पोटली जाने का बहुत दुख था। तभी उसके हाथ पर पोटली गिरी और सामने खड़े संत ने पूछा, अब सुख मिला। सेठ ने कहा कि हां। संत ने कहा कि तुम्हारा सुख धन से जुड़ा है। लेकिन सच्चा सुख केवल लोगों की भलाई करने से ही मिल सकता है। आपकी संपत्ति सच्चा सुख नहीं दे सकती है। यह सुनकर सेठ सारी बात समझ गया।
अशोक मिश्र