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बोधिवृक्ष: ठुकरा दिया रॉयल सोसायटी का अध्यक्ष पद

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लंदन में एक बच्चा रहता था। उसका नाम था माइकल फैराडे। वह अनाथ भी था। वह एक बुक बाइंडिंग की दुकान पर काम करता था। बच्चा मेहनती था। लेकिन जिज्ञासु भी बहुत था। वह किताबों को बड़ी उत्सुकता से देखता और जब भी मौका मिलता, तो वह उसे पढ़ता। उसकी मेहनत और ईमानदारी से दुकान का मालिक भी प्रसन्न रहता था। एक दिन की बात है, फैराडे के हाथ में एक किताब लगी जिसमें विद्युत के बो में काफी रोचक जानकारी दी गई थी। उसने दुकान के मालिक से पढ़ने के लिए वह किताब मांग ली। उसने काम से फुरसत पाने के बाद रात भर में पूरी किताब पढ़ ली और कुछ बातें नोट भी कर लीं। एक दिन उस दुकान पर एक ग्राहक आया। उसने माइकल को पुस्तक पढ़ते देखा, तो वह बातचीत करने लगा।

ग्राहक ने उस समय के सबसे बड़े रसायनज्ञ सर हंफ्री डेवी का भाषण सुनने को कहा। भाषण के दौरान माइकल कुछ नोट करते रहे और उसे बाद में सर डेवी के पास भिजवा दिया। सर डेवी उसे पढ़कर बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने उसे अपना सहायक बना लिया। कालांतर में माइकल फैराडे ने विद्युत चुंबकत्व और विद्युत रसायन में काफी योगदान दिया। धीरे-धीरे फैराडे के खोज को ख्याति मिलती गई।

वे लंदन रॉयल सोसाइटी के सदस्य बनाए गए। उनकी खोजों को देखते हुए उन्हें रॉयल सोसाइटी का अध्यक्ष पद ऑफर किया गया, लेकिन उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया। दुनिया में पहला जेनरेटर उनके ही सिद्धांतों के आधार पर बनाया गया। वे आजीवन अपने शोध में लगे रहे। उन्होंने जो कुछ भी खोज किए, सिद्धांत खोजे, उसे फैराडे नियम के नाम से जाना जाता है।

अशोक मिश्र

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