स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था। वह स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। स्वामी विवेकानंद ने वेदों का अध्ययन करके इसके प्रचार प्रसार का बीड़ा उठाया था। कहा तो यह भी जाता है कि स्वाधीनता संग्राम में स्वामी जी ने परोक्ष रूप से मदद की थी। उन्हीं की प्रेरणा से बंगाल में अनुशीलन समिति की स्थापना की गई थी। अमेरिका स्थित शिकागो में सन 1893 में होने वाले विश्व धर्म महासभा में शामिल होकर विवेकानंद ने इतिहास रच दिया। उन्होंने भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप में पहली बार स्वामी विवेकानन्द के कारण पहुंचा। उन्हीं दिनों की बात है।
स्वामी जी से एक ब्रिटिश महिला बहुत प्रभावित हुई। वह उनकी आध्यात्मिकता और बुद्धिमत्ता से अत्यंत प्रभावित थी। उस महिला ने स्वामी विवेकानंद से मिलकर कहा कि मैं आपसे शादी करना चाहती हूं। यह बात सुनकर स्वामी विवेकानंद गंभीर हो गए। उन्होंने उस महिला से बड़ी विनम्रता से पूछा कि आप मुझसे शादी क्यों करना चाहती हैं। उस महिला ने कहा कि मैं आपके जैसा धीर-गंभीर और बुद्धिमान बेटा चाहती हूं। महिला की बात सुनकर स्वामी विवेकानंद थोड़ी देर तक सोचते रहे और फिर बोले, मैं संन्यासी हूं। मैं शादी नहीं कर सकता हूं।
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हां मैं आपकी इच्छा जरूर पूरी कर सकता हूं। उस महिला ने पूछा, कैसे? स्वामी जी ने उत्तर दिया कि आप मुझे अपना बेटा बना लीजिए। मैं आपको मां बना लेता हूं। इसके आपकी इच्छा पूरी हो जाएगी और मुझे एक और मां मिल जाएगी। यह सुनकर वह महिला अवाक रह गई। उसने स्वामी विवेकानंद को प्रणाम करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति इसी वजह से महान है।
-अशोक मिश्र
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