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युद्ध संसार में आज भी महात्मा गांधी प्रासंगिक है?

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क्या सचमुच महात्मा गांधी का रास्ता ही पूरे विश्व को युद्धों और महायुद्धों से बचा सकता है। हालांकि दुनिया के कई महान नेता अपने को महात्मा गांधी का अनुयायी बता चुके हैं। अब हमास और इजराइल युद्ध के बीच भी महात्मा गांधी याद किए जा रहे हैं। सऊदी अरब के पूर्व खुफिया प्रमुख ने हमास को सलाह दी है कि वह महात्मा गांधी के रास्ते पर चलते हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन के जरिए इजरायल से अपना हक ले। अपनी मौत के 74-75 साल बाद भी अगर इस संकट के दौर में महात्मा गांधी प्रासंगिक हैं, यह गांधी वादी दर्शन की बहुत बड़ी जीत है। वैसे गांधीवादी दर्शन को दुनिया भर के दार्शनिकों ने वैसे मान्यता नहीं दी जिस तरह अरस्तू, प्लेटो, कार्ल मार्क्स आदि को मिली है। लेकिन गांधी की सविनय अवज्ञा आंदोलन और अहिंसा वर्तमान परिस्थितियों में बड़े काम की है।

कुछ लोगों का यह भी मानना है कि गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी और महात्मा गांधी की अहिंसावादी नीतियां समान हैं। लेकिन अगर महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी और गांधी की अहिंसा नीति का विश्लेषण किया जाए, तो अंतर साफ नजर आता है। बुद्ध और महावीर मानते थे कि दुनिया में किसी भी व्यक्ति को हिंसा करने का अधिकार नहीं है। चाहे वह राजा हो या रंक। लेकिन उनका मानना था कि जैसा राजा होता है, वैसी प्रजा होती है। यही वजह है कि बुद्ध और महावीर स्वामी जीवन भर तत्कालीन राजाओं को अहिंसक बनाने की कोशिश करते रहे। उनका मानना था कि प्रजा हिंसा करती ही नहीं है। लेकिन महात्मा गांधी कहते थे कि यदि शासक हिंसा करता है, तो करे, लेकिन हम हिंसा नहीं करेंगे। हम अपने धैर्य, अहिंसा और प्रेम पूर्ण व्यवहार से अंग्रेजों का हृदय परिवर्तन करेंगे। गांधी की अहिंसा ईसा मसीह की इस उक्ति का समर्थन करती नजर आती है कि यदि कोई तुम्हारे गाल पर एक थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो।

रूसी लेखक लियो टॉलस्टाय ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘वार एंड पीस’ में इसी सिद्धांत की प्रतिस्थापना की है। गांधी का अहिंसावादी दर्शन ईसा मसीह और लियो टॉलस्टाय से प्रभावित है। तो फिर! क्या आज के संदर्भ में गांधी अप्रासंगिक हो गए? नहीं। इन दिनों जिन-जिन देशों में युद्ध चल रहा है, वे या तो ईसा को मानने वाले हैं या फिर मूसा और मोहम्मद साहब के अनुयायी हैं। महात्मा बुद्ध और स्वामी महावीर रूस-यूक्रेन और हमास-इजराइल युद्ध के दौरान प्रासंगिक हो सकते थे, लेकिन उनका संदेश न रूसी राष्ट्रपति पुतिन सुनने के मूड में हैं, न यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की। न हमास के क्रूर हत्यारे और न ही इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू। और फिर बुद्ध या महावीर का संदेश लेकर इनके बीच जाए कौन? ऐसे में बचता है गांधी का रास्ता। फलस्तीन और इजराइल तथा रूसी-यूक्रेनी जनता ही अपने शासकों के खिलाफ उठ खड़ी हो।

 वह अहिंसक आंदोलन करे, दुनिया भर का जनसमर्थन हासिल करे और अपने-अपने देश के राष्ट्राध्यक्षों और हमास के क्रूर कर्ताधर्ताओं को युद्ध बंद करने पर मजबूर कर दे। जनता को बस यह विश्वास दिलाने की जरूरत है कि उसकी समस्याओं का हल उसे ही खोजना होगा। बुद्ध का यह कथन याद रखना होगा कि कोई अवतार नहीं आएगा, उनका दुख दूर करने।

संजय मग्गू

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