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लापरवाही के चलते प्रदूषित हो रही हैं हरियाणा की नदियां

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संजय मग्गू
दुनिया की सभी सभ्यताएं प्राचीनकाल में नदियों के किनारे ही पनपी और विकसित हुईं। हरियाणा का भी प्राचीन इतिहास बताता है कि यह की भी सभ्यता नदियों के किनारे पुष्पित-पल्लवित हुई। हरियाणा की प्रमुख आठ नदियों यमुना, सरस्वती, मारकंडा, घग्गर, दोहान, टांगरी, साहिबी और कृष्णावती की वजह से ही यहां सभ्यताएं पनपी और सदियों तक यह प्रदेश धन-धान्य से परिपूर्ण रहा। लेकिन अफसोस है कि इन नदियों के प्रति बरती गई लापरवाही और उपेक्षापूर्ण रवैये के चलते जीवनदायिनी नदियां अब मौत का पर्याय बनती जा रही हैं। कुछ नदियों का तो अस्तित्व ही खतरे में दिखाई देता है। इसके लिए सरकारें और प्रदेश की पूरी जनता जिम्मेदार है। प्राचीनकाल में नदियों को मां का दर्जा दिया गया था। इसके पीछे सोच यह थी कि इसके किनारे रहने वाले लोग इन नदियों की अपनी जन्मदायिनी मां की तरह खयाल रखेंगे। लेकिन जैसे-जैसे नदियों के किनारे शहरी सभ्यता का विस्तार होता गया, लोगों ने नदियों का शोषण और दोहन करना शुरू कर दियाा। शहरों में और नदियों के किनारे भारी संख्या में लगे कल-कारखानों का प्रदूषित जल इन नदियों में मिलकर उसे विषाक्त बनाता चला गया और आज नतीजा यह है कि इन नदियों का पानी पीने लायक तो क्या, छूने लायक भी नहीं बचा है। यह नदियां इतनी प्रदूषित हो गई हैं कि इन नदियों के पानी से खेतों को सींचने पर उगने वाली फसल तक जहरीली होती जा रही है। कांग्रेस की नेता कुमारी सैलजा ने घग्गर नदी के प्रदूषित जल का मुद्दा उठाया है। दरअसल, इसके लिए वर्तमान और पूर्ववर्ती सरकारें जिम्मेदार हैं। प्रदेश की सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में घग्गर, कौशल्या, मारकंडा और साहिबी हैं। ये नदियां कभी पूरे प्रदेश की प्यास बुझाने के साथ-साथ खेतों को हरा-भरा रखती थीं। लेकिन अब यह सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में गिनी जाती हैं। इसके लिए पंजाब, हिमाचल और हरियाणा की सरकारें जिम्मेदार हैं। इन नदियों का कितना बुरा हाल है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि इन नदियों के किनारे बसे गांवों और शहरों में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां फैल रही हैं और इसका कारण इन नदियों का जल है जिसका उपयोग लोग पीने और सिंचाई में करते हैं। लोग और स्थानीय निकायों के कर्मचारी कूड़ा-करकट नदियों के किनारे लाकर डाल रहे हैं। ट्रीटमेंट हुए बिना कारखानों से निकलने वाला रसायन और सीवेज अपशिष्ट इन्हीं नदियों में डाला जा रहा है। इसकी वजह से नदियां प्रदूषित हो रही हैं। ऐसे में राज्यों और स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी है कि वह प्रदूषण की रोकथाम और जल निकायों या भूमि में जल को जाने देने से पहले सीवेज और औद्योगिक अपशिष्टों का आवश्यक उपचार अवश्य करें।

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