वैसे यह फैसला उनका व्यक्तिगत था। इसमें किसी को भी इस मामले में हस्तक्षेप करने की जरूरत भी नहीं थी। लेकिन सिद्धू मूसेवाला की मां चरणजीत कौर के साहस और फैसले की सराहना करनी चाहिए। 58 साल की उम्र में कृत्रिम तरीके से मां बनने का फैसला करना सचमुच एक साहसिक फैसला था। पूरे देश में अपनी गायिकी के लिए प्रसिद्ध शुभदीप सिद्धू मूसेवाला की 29 मई 2022 में कुछ लोगों ने मानसा में गोली मारकर हत्या कर दी थी। सिद्धू मूसेवाला कांग्रेस के नेता भी थे। उनकी हत्या के बाद काफी हो-हल्ला मचा था। राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को भुनाने की भी कोशिश की थी। सिद्धू मूसेवाला अपने मां-बाप की इकलौती संतान थे। अपनी इकलौती संतान की हत्या के बाद मां-बाप की क्या दशा हुई होगी, इसको समझा जा सकता है। साठ साल की उम्र के आसपास पहुंचे मां-बाप को जब किसी सहारे की जरूरत थी, ऐसी उम्र में उन्हें बेसहारा होना पड़ा। यह बहुत बड़ी विडंबना थी।
अपने दुख-दर्द से उबरकर जब उनके पिता बलकौर सिंह और मां चरणजीत कौर ने दोबारा संतान पैदा करने का फैसला लिया, तो पूरे भारत ने इसका स्वागत किया। हमारे समाज में इस उम्र में मां बनने पर कुछ अच्छा नहीं समझा जाता है। गांव-समाज के लोग अकसर ताना मारते हैं। बेटे-बेटियों की शादी करके नाती-पोते खिलाने की उम्र में चली हैं बच्चा पैदा करने। गांव-देहात की छोड़िए, शहरों में पढ़े-लिखे लोगों की यही मानसिकता होती है। इस उम्र की महिला भी अपने को बहुत शर्मिंदा होना पड़ता है जब उसे पता चलता है कि वह गर्भवती है और उसके सामने बच्चे को जन्म देने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। पता नहीं कब और कैसे हमारे समाज में यह धारणा पनप गई कि अधेड़ावस्था में नाती-पोतों को खिलाना, उनकी देखभाल करना और घर में रहकर भगवान का भजन करना चाहिए।
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माना कि बलकौर सिंह और चरणजीत कौर ने बहुत विषम परिस्थितियों में आईवीएफ से संतान को जन्म देने का फैसला लिया, लेकिन ऐसा फैसला लेना उनके लिए कतई आसान नहीं था। अपने जवान बेटे की बर्बर हत्या के बाद वे दोनों संभल पाए, यही बहुत बड़ी बात है। हां, ऐसी विषम परिस्थितियों में उन्होंने जो फैसला लिया, उससे हमारे समाज के वे लोग भी आगे बढ़कर अधेड़ावस्था में संतान को जन्म देने का फैसला ले पाएंगे, जो अभी तक ‘लोग क्या कहेंगे’ सोचकर अपनी इच्छाओं को दबा देते थे।
यदि चरणजीत कौर से प्रेरणा लेकर इस उम्र में पहुंची एक भी महिला सीना तानकर कहे कि यह मेरा फैसला है, इसके लिए मैं कतई शर्मिंदा नहीं हूं। तो मैं समझता हूं कि हमारे समाज के लिए चरणजीत कौर का फैसला एक मिसाल की तरह होगा। इन्हीं परिस्थितियों को रेखांकित करती आयुष्मान खुराना अभिनीत फिल्म ‘बधाई हो’ आई थी। फिल्म ने समाज की मानसिकता को बहुत अच्छी तरह से रेखांकित किया था। वह तो फिल्म की बात थी। लेकिन बलकौर सिंह और चरणजीत कौर के इस साहस के लिए सैल्यूट तो बनता ही है। नन्हें शुभदीप को भी खुले मन से शुभकामनाएं देनी चाहिए।
-संजय मग्गू
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