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जब प्रकृति चिरस्थायी नहीं, तो सुख कैसे हो सकता स्थायी?

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संजय मग्गू
मनुष्य और पशु में क्या अंतर है? सहज ज्ञान या यों कहें कि पशु पहलू दोनों में समान होती है जो प्रकृति प्रदत्त है। मनुष्य को पशु से जो अलग करती है, वह है चेतना। यह मनुष्य की अर्जित की गई संपदा है जो उसे अपने पुरखों से विरासत में मिलती है जीन के माध्यम से। सहज ज्ञान या पशु पहलू के चलते ही मनुष्य में भूख, प्यास और काम भावना जैसी प्रवृत्तियां पशुओं के समान ही पैदा होती है। इनका शमन भी वह लगभग पशुवत ही करता है। लेकिन उसकी चेतना ने इन प्रकृति प्रदत्त प्रवृत्तियों को अनंत विस्तार दे दिया है। भूख लगने पर यदि किसी पशु को चारा दिया जाए, तो वह जितनी भूख होगी, उतना खाकर बाकी छोड़ देगा। वह कल के लिए नहीं सहेजकर रखता है। उसे इस बात की भी चिंता नहीं होती है कि कल वह क्या खाएगा? लेकिन मनुष्य कल की चिंता करता है। वह आज तो अपनी भूख मिटाता ही है, कल का भी बंदोबस्त करने का प्रयास करता है। मनुष्य की इस चेतना से पैदा हुई लालसाओं का कोई ओर-छोर नहीं है। अनंत हैं। असीमित हैं। मनुष्य की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि वह अपने सुख के संसाधन को जीवन पर्यंत के लिए सहेजकर रखना चाहता है। इसके लिए उसे जरूरत पड़ती है सत्ता की, अधिकार की, बल की चाहे वह धन बल, बाहु बल हो या सत्ता बल। इसे पाने की लालसा हर व्यक्ति में होती है। अपनी कूबत भर पाने का प्रयास भी हर व्यक्ति करता है। लेकिन जिसे प्राप्त हो जाता है, वह उसे अपने पास चिरस्थायी बनाने का प्रयास करता है और इस प्रयास के चक्कर में उसका सुख नहीं उठा पाता है। सुख की प्यास बड़ी गहरी होती है। यदि मनुष्य सुखों का सहज आनंद प्राप्त करे, तो दुख के दिन आने पर उसे उतना कष्ट नहीं होता है। जितना सुख को स्थायी बनाए रखने का प्रयास करने वालों को होता है। दिक्कत यह है कि जैसे ही सुख की प्राप्ति होती है, लोग उसे स्थायी बनाने के फेर में पड़ जाते हैं। दुनिया में बहुत कम लोग ही होते हैं जो सुख और दुख को सहज भाव से स्वीकार करके दुख में भी सकारात्मकता खोज लेते हैं। लोग यह भूल जाते हैं कि जब यह प्रकृति ही चिरस्थायी नहीं है, तो फिर सुख या दुख स्थायी कैसे हो सकते हैं। परिवर्तन ही परम सत्य है। जो कल नहीं था, वह कल भी नहीं रहेगा। लेकिन मानव स्वभाव का क्या किया जाए। चेतना उसे चैन से बैठने दे तब न! वहीं जो पशु हैं, वह तटस्थ भाव से सब कुछ सहन करते हैं। उन्हें किसी के प्रति मोह नहीं होता है। गाय या भैंस का बछड़ा यदि मर जाए, तो गाय-भैंस कुछ ही देर तक परेशान रहती है, लेकिन यदि भूख लग गई, तो वह चारा खाने से भी नहीं चूकती है। कुछ ही दिनों बाद वह पहले की ही तरह हो जाती है। लेकिन इंसान कई वर्षों तक अपने परिजनों की याद में आंसू बहाता है, उसके साथ बिताए गए पलों को याद करता है। जब मानव चेतना नकारात्मक होती है, तो वह समाज को नुकसान पहुंचाता है, सारे कुकर्म करता है, लेकिन यदि चेतना सकारात्मक हो, तो देव बन जाता है।

संजय मग्गू

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