संजय मग्गू
दक्षिण यूरोप और एशिया के कुछ देशों में बुजुर्गों की आबादी इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि वहां की सरकारों को अब अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने की अपील करनी पड़ रही है। दक्षिणी यूरोप में क्रोएशिया, ग्रीस, इटली, माल्टा, पुर्तगाल, सर्बिया, स्लोवेनिया और स्पेन जैसे देश शामिल हैं जहां दुनिया के सबसे वृद्ध रहते हैं। यहां की 21 प्रतिशत आबादी बुजुर्गों की है। एशिया में सबसे ज्यादा बुजुर्ग आबादी वाला देश जापान है जहां बुजुर्गों की आबादी का प्रतिशत 28 है जो पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है। इसके बाद चीन का नंबर है। 65 वर्ष से अधिक आयु के लोग भारत में अभी सिर्फ 6 प्रतिशत है, लेकिन जिस संकट से जापान गुजर रहा है, उसकी आहट भारत में भी धीरे-धीरे सुनाई देने लगी है। अभी कुछ दिन पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 16 बच्चे पैदा करने के बारे में सोचने की बात कही थी। वहीं आंध्र प्रदेश के सीएम एन चंद्रबाबू नायडु भी अधिक बच्चे पैदा करने की बात कह रहे हैं। इन दोनों नेताओं की इस अपील के पीछे कारण कुछ दूसरे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि तीन-चार दशक बाद भारत की आबादी स्थिरता की ओर बढ़ेगी और उसके बाद हो सकता है कि घटने लगे। बुजुर्गों की संख्या जापान की तरह बढ़ने लगे। तो फिर सवाल यह है कि महिलाएं क्या करें? वे क्यों ज्यादा बच्चे पैदा करें? देश की आर्थिक स्थिति को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि महंगाई के इस दौर में जब एक बच्चे का पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध बड़ी मुश्किल से हो पा रहा है? ऐसे में वे ज्यादा बच्चे पैदा करने को जोखिम क्यों लें। भारत में आज से पांच-सात दशक पहले तक महिलाओं की प्रजनन दर ज्यादा थी। करीब छह के आसपास। उन दिनों ज्यादातर महिलाएं शिक्षा से वंचित थीं। संयुक्त परिवार थे, तो इतने ज्यादा बच्चों की देखभाल दादी, नानी, बुआ, मौसी कर लेती थीं। और आज। महिलाएं खुद मुख्तार हैं। पढ़ी-लिखी हैं, रोजगार करती हैं, ऐसी स्थिति में उनकी मानसिकता बड़ा बदलाव आया है। पहले स्त्री की सबसे बड़ी योग्यता मां बनना हुआ करता था। लेकिन अब योग्यता के मायने बदल गए हैं। अब लड़की आजीवन अविवाहित रहती है, तो कोई उसे ताने नहीं देता है। विवाहित महिलाएं बच्चे पैदा नहीं करती हैं, तो उनको बांझ कहकर समाज मजाक नहीं उड़ाता है। यह उसका फैसला है कि वह बच्चे पैदा करे या नहीं। उनके अपने सुख-दुख हैं, उनका करियर है, उनकी शारीरिक मानसिक दशा भी बच्चे पैदा करने या न करने पर निर्भर करती है। और फिर वे अपने सुख की तिलांजलि क्यों दें? ऐसी स्थिति क्या किया जाए, यह देश के भाग्य विधाताओं, समाजशास्त्रियों और अर्थशास्त्रियों को सोचना होगा। यह तो तय है कि दुनिया में सबसे युवा देश भारत कल बूढ़ा भी होगा। अभी भले सबसे ज्यादा युवा शक्ति हमारे पास है, लेकिन यही युवा दो-तीन दशक बाद बुजुर्ग में तब्दील हो जाएंगे, तब क्या होगा? बस, इसी समस्या का हल खोजना होगा? तब क्या आज के बूढ़े देशों की तरह हम भी कामगार बाहर से आयात करेंगे?
संजय मग्गू