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हमें जाने कब मिलेगी देश के गद्दारों से मुक्ति?

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बहुत पहले एक फिल्मी गीत सुना था, संभल के रहना अपने घर में छिपे हुए गद्दारों से। महान गीतकार प्रदीप ने सन 1958 में आई फिल्म ‘तलाक’ के लिए यह लिखा था। उसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं,

कहनी है हमें इक बात देश के पहरेदारों से,
संभल के रहना अपने घर में छिपे हुए गद्दारों से,
झाँक रहे हैं अपने दुश्मन अपनी ही दीवारों से।
संभल के रहना अपने घर में छिपे हुए गद्दारों से।

आजादी के ग्यारह साल बाद का यह गीत कवि प्रदीप ने लिखा था, तब नि:संदेह उनके सामने कुछ गद्दार चेहरे भी रहे होंगे, वरना वे ऐसी रचना करते ही क्यों? उन्होंने देशप्रेम की अनेक महान रचनाएं लिखी हैं। जैसे ‘ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आँख में भर लो पानी’ तो काफी लोकप्रिय हुआ। लेकिन उन्होंने गद्दारों के बारे में भी लिखा कि उनसे संभाल कर रहना है। इसका मतलब यह हुआ कि उस समय कुछ गद्दार सक्रिय थे। दुर्भाग्य की बात है कि ये छिपे हुए गद्दार दिनोंदिन बढ़ते ही चले गए। इतने अधिक बढ़ गए कि ये लोग दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में नारे तक लगाने लगे, भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाल्लाह! जो देश के टुकड़े करने की बात करता हो, तो इससे बड़ा गद्दार कोई और हो नहीं सकता।

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अभी कुछ दिन पहले दक्षिण भारत के एक नेता ने देश विरोधी बयान दिया कि दक्षिण भारत के राज्यों को अपना देश बनाने की मांग करनी चाहिए। कुछ मुस्लिम धर्मगुरु भी अपने लोगों को भड़काने वाले भाषण निरंतर देते रहते हैं। समाज में समरसता को खत्म करने वाले भाषण भी देश के साथ गद्दारी है। पिछले दिनों मेरठ से एक व्यक्ति पकड़ा गया जो पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए काम कर रहा था। इसके पहले भी अनेक जासूस पकड़े जाते रहे हैं। इनका कोई धर्म ईमान नहीं है। इन्हें सिर्फ पैसे चाहिए। भले ही देश को नुकसान पहुंचे। विचारधारा के स्तर पर भी अनेक तथाकथित प्रगतिशील लेखक, फर्जी समाज सेवी भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल रहते हैं। जेएनयू में जो भारत विरोधी नारे लगे तो उसे अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा माना गया। अफजल गुरु जैसे खतरनाक आतंकवादी को फांसी दी गई, तो जेएनयू में यह नारा भी लगा कि अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं।

जिस देश में इस तरह की पीढ़ी सक्रिय हो, उस देश की आंतरिक सुरक्षा पर हर समय खतरा मंडराता रहेगा। इसलिए भारत सरकार का दायित्व है कि ऐसे तमाम लोगों पर फौरन कार्रवाई करनी चाहिए, जो देश विरोधी बातें करते हैं। पिछले दिनों बेंगलुरु के कांग्रेस सांसद डीके सुरेश ने यहां तक कह दिया कि दक्षिणी राज्यों को एक अलग राष्ट्र मांग के लिए आवाज उठानी चाहिए। हालांकि वह केंद्र द्वारा पर्याप्त धनराशि न दिए जाने के विरोध में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ऐसा कह रहे थे लेकिन ऐसा विचार आना ही अपने आप में खतरनाक है। केंद्र द्वारा राज्यों को मिलने वाले अनुदान कम-ज्यादा होते रहते हैं। इसे लेकर अलग राष्ट्र की मांग उठाना ही अपने आप में सांसद की गंदी मानसिकता को दर्शाता है। बहुत पहले उत्तर प्रदेश के सपा नेता आजम खान ने भारत माता को डायन कह दिया था। राष्ट्रगान का अपमान, तिरंगे का अनादर तो आए दिन होता रहता है।

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कहने का मतलब यह है कि धीरे-धीरे कुछ लोगों के मन में देशप्रेम शून्य होता जा रहा है। यह चिंता की बात है। अलग देश पर की मांग करने वाले सांसद पर तो कायदे उसे फौरन देशद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए। लेकिन हमारे यहां कई बार इतनी अधिक उदारता बरती जाती है कि लोगों के हौसले बुलंद होते रहते हैं। वे देश विरोधी बातें करने को अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा मान लेते हैं। हमारे यहाँ एक कहावत चलती है, जिस थाली में खाया उसी में छेद किया। देश के कुछ लोग यही कर रहे हैं। भारत देश में रह रहे हैं, इसका अन्न-जल खा-पी कर मोटे ताजे हो रहे हैं, इस देश की अनेक सुविधाएं लेकर शान से जी रहे हैं मगर वक्त पड़ने पर इसी देश को गाली भी दे रहे हैं।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

गिरीश पंकज

-गिरीश पंकज

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