अभी कल ही इंडिया गठबंधन ने बिहार की सीटों का बंटवारा किया है। लालू यादव की पार्टी आरजेडी को 26, कांग्रेस को नौ और बाकी वामपंथियों को पांच सीटों की हिस्सेदारी दी गई है। वैसे तो इस बंटवारे में पहली नजर में कोई खामी नजर नहीं आती है। लेकिन जब अभी हाल ही में अपनी पार्टी जाप यानी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय करने वाले राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव और लालू प्रसाद यादव के संबंधों का विश्लेषण किया जाए, तो एक बात साफ हो जाती है कि आरजेडी ने कांग्रेस को पूर्णिया, मधेपुरा, बेगूसराय जैसी सीटें कांग्रेस को क्यों नहीं दी। दरअसल, इसके पीछे पप्पू यादव के कांग्रेस में आने के बाद लालू यादव के मन में उपजा भय है। लालू यादव को लगता है कि यदि बिहार की राजनीति में पप्पू यादव का वर्चस्व बढ़ा तो उनके पुत्र तेजस्वी यादव के लिए खतरा बढ़ सकता है।
यही वजह है कि पूर्णिया लोकसभा सीट कांग्रेस को देने के बजाय लालू प्रसाद यादव ने अपने पास रख लिया। कारण यह है कि कांग्रेस में शामिल होते समय ही राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने पूर्णिया से लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी। अब जब आरजेडी ने पूर्णिया सीट पर बीमा भारती को उतारा है। बीमा भारती हाल में ही जदयू छोड़कर आरजेडी में शामिल हुई हैं। इसके बावजूद पप्पू यादव ने पूर्णिया सीट पर चुनाव लड़ने की इच्छा का त्याग नहीं किया है। वे वहां से फ्रेंडली चुनाव लड़ने को तैयार हैं। वैसे पूर्णिया लोकसभा सीट पप्पू यादव की पारंपरिक सीट है। यहां से वे तीन बार सांसद रह चुके हैं। यहां कांग्रेस की भी अच्छी पकड़ है और यदि यह सीट कांग्रेस को मिलती तो इंडिया गठबंधन के खाते में यह सीट आसानी से आ जाती।
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मधेपुरा सीट अपने पास रखने का कारण यह है कि यहां से भी पप्पू यादव सांसद रह चुके हैं। सुपौल सीट पर पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन साल 2014 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत चुकी हैं। यही नहीं बेगूसराय सीट पर गिरिराज सिंह भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। साल 2019 में कन्हैया कुमार यहां से चुनाव लड़े थे। इस बार बेगूसराय से कन्हैया कुमार को कांग्रेस उतार सकती थी। बेगूसराय में भी कांग्रेस मजबूत दिखाई दे रही है। ऐसे में यदि आरजेडी समर्थक वोट कन्हैया कुमार को मिल जाते, तो कांग्रेस यह सीट आसानी से जीत सकती थी। बेगूसराय में वामपंथी समर्थक वोट भी अच्छी खासी संख्या में हैं। लेकिन लालू प्रसाद यादव को यह भला कैसे मंजूर हो सकता था।
यदि बिहार की राजनीति में कन्हैया कुमार युवा नेता के तौर पर उभरते हैं, तो वे भविष्य में तेजस्वी यादव का विकल्प हो सकते हैं। लेकिन जिस तरह गठबंधन में सीटों का बंटवारा हुआ है, उससे यही लगता है कि कांग्रेस ने लालू यादव के सामने पूरी तरह समर्पण कर दिया है। जिन सीटों पर वह पक्के तौर पर जीत सकती थी, उसको लेने की जगह ऐसी सीटों को स्वीकार करना जहां उसकी जीत संदिग्ध है, समझ में नहीं आता है। सिर्फ गठबंधन धर्म का निर्वाह करने के लिए ऐसा करना कतई उचित नहीं है। सीटों के बंटवारे को लेकर अब राजनीतिक हलके में यह चर्चा शुरू हो गई है कि लालू यादव लोकसभा चुनाव जीतने के लिए लड़ना चाहते हैं या फिर उन लोगों को रोकने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं जो भविष्य में तेजस्वी यादव के लिए चुनौती बन सकते हैं। न जीतने की आशंका होते हुए भी मधेपुरा, पूर्णिया, सुपौल, बेगूसराय जैसी सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारने की जिद के पीछे और क्या हो सकता है।
-संजय मग्गू
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