महात्मा बुद्ध ने मानव समाज के लिए कितना बड़ा त्याग किया, इसको सिर्फ महसूस किया जा सकता है। दुख क्यों है? बस इसी बात का पता लगाने के लिए तत्कालीन समय की सबसे सुंदर स्त्री और अपने पुत्र को सोता हुआ छोड़ देने का साहस कौन कर सकता था भला। दुख क्यों है? इसका पता क्या वे सिर्फ अपने लिए लगाना चाहते थे। नहीं, इसके पीछे पूरे मानव समाज को सुखी करने की मंशा थी। आज से तीन हजार साल पहले ही महात्मा बुद्ध ने यह जान लिया था कि सभी समस्याओं की जड़ निजी संपत्ति है।
यही वजह है कि उन्होंने अपने संघ में उन्हीं को प्रवेश दिया जिसने अपनी निजी संपत्ति त्याग दी। संघ में रहने वाले किसी भी भिक्षु की निजी संपत्ति सिर्फ तो चीवर और एक भिक्षा पात्र ही हुआ करता था। वह भी वस्तुत: संघ की ही संपत्ति होती थी। किसी भिक्षु की मृत्यु होने पर यदि चीवर (पहनने ओढ़ने का कपड़ा) उपयोग लायक है, तो वह चीवर और भिक्षापात्र दूसरे भिक्षु को दे दिया जाता था। उन्होंने यह भी समझ लिया था कि समाज में फैले तमाम पाखंड और कर्मकांड से समाज का दम घुट रहा है। अवतारवाद के चंगुल में फंसी जनता कराह रही है।
यही वजह है कि उन्होंने सबसे पहले शोषित पीड़ित जनता से कहा कि तुम्हारी समस्याओं को हल करने और दुखों से छुटकारा दिलाने के लिए कोई अवतार नहीं आएगा। तुम्हें अपना प्रकाश खुद बनना होगा। अप्प दीपो भव। यज्ञ और कर्मकांड की जंजीर में जकड़ी जनता की मुक्ति का मार्ग दिखाकर महात्मा बुद्ध ने उस पर चलने को प्रेरित किया। यही वजह है कि जितनी तेजी से देश और देश के बाहर बुद्धत्व का प्रचार-प्रसार हुआ उतनी तेजी से किसी धर्म का प्रचार नहीं हुआ। पूरा भारत महात्मा बुद्ध की करुणामयी वाणी से गूंज उठा। लोगों ने मुक्त कंठ से महात्मा बुद्ध को भगवान बुद्ध कहना शुरू कर दिया।
अशोक मिश्र