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महिला आरक्षण बिल: इंतजार..इंतजार..बस इंतजार

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मशहूर शायर दाग देहलवी का एक बड़ा मौजूं शेर है-खूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं/साफ छिपते भी नहीं, सामने आते भी नहीं। ऐसा ही कुछ हाल अभी कुछ ही दिन पहले संसद के दोनों सदनों में पारित किए गए महिला आरक्षण बिल का है। महिला आरक्षण विधेयक पास भी हो गया और महिलाओं को कुछ मिला भी नहीं। महिलाओं को लुभा भी लिया और उन्हें कुछ देना भी नहीं पड़ा। मरदों की फितरत ही ऐसी होती है। वे महिलाओं को कुछ इसी तरह फुसलाते हैं। पूरे देश में हल्ला मचा हुआ है। महिला आरक्षण बिल पास हो गया। इस खुशी में महिलाएं नाच रही हैं। झूम रही हैं। टोकरे भर-भर कर मिठाइयां बांटी जा रही है।

राजनीतिक दलों में श्रेय लेने की होड़ मची हुई है। कोई कह रहा है कि हम जो वायदा करते हैं, उसे पूरा करते हैं। हमने अपने चुनाव घोषणा पत्र में महिला आरक्षण बिल पास कराने का वायदा किया था। महिला शक्ति वंदन विधेयक पास करा दिया। एक महिला नेत्री ने तो यहां तक कहा कि उनके पति का यह विधेयक सपना था। आज मेरे पति का यह सपना पूरा हो रहा है।। हो क्या रहा है, हो गया है। पूरे देश में सभी अपनी-अपनी ढफली बजा रहे हैं। महिला और पुरुष कार्यकर्ता पार्टी दफ्तरों के सामने नागिन डांस करके अपने-अपने घर जा चुके हैं। महिलाएं अब अपने पति को आंख दिखा रही हैं, खबरदार! जो कुछ कहा तो। अब हमें भी 33 फीसदी आरक्षण मिल रहा है। इतनी हायतौबा के बाद महिला आरक्षण बिल के पास होने का इंतजार करने वाली महिलाएं खाली हाथ हैं।

ठीक वैसे ही जैसे कोई चतुर गणितज्ञ एक को एक से घटाकर नतीजा शून्य बना दे। चतुर खिलाड़ी ने महिला शक्ति वंदन विधेयक के सामने जनगणना और परिसीमन का पहाड़ अवरोधक लाकर खड़ा कर दिया। अब विधेयक रूपी गाड़ी हिचकोले खाने लगी तो इसमें उसका क्या दोष? उसने तो हाथ खड़े कर दिए। जब तक अगली जनगणना नहीं हो जाती, तब तक महिला आरक्षण बिल लागू नहीं हो सकता है। वैसे भी संविधान संशोधन के जरिये वर्ष 2026 तक नए परिसीमन पर रोक लगी हुई है।

संवैधानिक बाध्यता है, उसके हाथ में तो है नहीं। जो लोग महिला आरक्षण विधेयक तो तुरंत लागू करने की मांग कर रहे हैं, वे भी इस बात को समझते हैं। 2026 से पहले कुछ नहीं हो सकता। लेकिन यह भी तो दिखाना है कि हमारी सरकार होती तो हम तुरंत लागू कर देता। संविधान में संशोधन कर देते। एक दूसरे के खिलाफ बतकूचन हो रही है। वर्ष 2021 की जनगणना हुई ही नहीं है। नए आंकड़ों के अभाव में अपने हिस्से की सीटें पुरुष महिलाओं पर न्यौछावर कर दे, पुरुष इतना बेवकूफ नहीं है।

जब जनगणना होगी, परिसीमन होगा, संसद के दोनों सदनों और राज्यों की विधानसभाओं में सीटें बढ़ेंगी, तो वह महिलाओं के हिस्से में आने वाली सीटें दे दी जाएंगी। लेकिन असली सवाल तो यही है कि नई जनगणना कब होगी? कब परिसीमन आयोग बनेगा? कब उसकी रिपोर्ट आएगी? इसके लिए तो महिलाओं को सब्र करना होगा। एक बहुत पुरानी कहावत है कि सब्र का फल मीठा होता है। तो देश की आदरणीय महिलाओं, करो इंतजार महिला आरक्षण बिल के लागू होने का। जब तक सब्र का पैमाना छलक न जाए।

संजय मग्गू

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