संजय मग्गू
कामकाजी तनाव यानी वर्क स्ट्रेस इस हद तक पहुंच गया है कि यह अब लोगों की जान लेने लगा है। वर्क स्ट्रेस के चलते लोगों की काम के दौरान, कहीं आते-जाते, घर पर अचानक मौत हो रही है। कामकाजी तनाव जानलेवा साबित होने लगा है। यदि हम अपने आसपास गौर से देखें तो देश के दो तिहाई कर्मचारी तनाव में हैं। नौकरियों की लगातार घटती संख्या के चलते लोग अपने बॉस का विरोध नहीं कर पा रहे हैं और उन्हें अक्सर दस से बारह घंटे काम करना पड़ता है। दुनिया में सबसे ज्यादा वर्कलोड वाले देशों में भारत भूटान के बाद दूसरे नंबर पर है। इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन की रिपोर्ट बताती है कि भारत में 51 प्रतिशत लोग हर हफ्ते 49 घंटे या उससे अधिक काम करते हैं। देश की 85 प्रतिशत वर्क फोर्स असंगठित क्षेत्र में है और इस क्षेत्र में नौकरी की कोई गारंटी नहीं है। इस क्षेत्र में काम करने वाले कर्मियों के मन में यह भय हमेशा बना रहता है कि यदि नौकरी छूट जाएगी, तो पता नहीं आगे मिलेगी भी या नहीं। वेतन भी इन्हें न्यूनतम दिया जाता है, इस वजह से आठ घंटे से ज्यादा काम करना इनकी मजबूरी बन जाती है। कंपनियां भी अधिक से अधिक काम कराने के तरीके खोजती हैं और इन्हें अतिरिक्त समय में किए गए काम के पैसे भी नहीं देती हैं। कामकाजी तनाव से निजी क्षेत्र के कर्मचारी ही नहीं जूझ रहे हैं, सरकारी कर्मचारी भी इसके शिकार हैं। सेना, अर्धसैनिक बलों, पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों को भी नियत समय से ज्यादा समय तक काम करना पड़ रहा है। एक बार इन जवानों को तैनात कर दिया गया, तो इन्हें कब रिलीव किया जाएगा, इसका कोई तय समय नहीं है। वर्क स्ट्रेस के चलते साल 2018 से लेकर 2022 के बीच 654 जवानों ने आत्महत्या की है। इस बीच काम का दबाव सहन न कर पाने वाले पचास हजार से ज्यादा जवानों ने नौकरी ही छोड़ दी है। अस्पतालों में जूनियर डॉक्टर, सीनियर डॉक्टर और एमडी एमएस करने वाले काम के दबाव में आत्महत्या कर रहे हैं। लगातार बारह-चौदह घंटे तक बिना किसी अवकाश के काम करने से कर्मचारी फ्रस्टेट होकर या तो आत्महत्या कर रहे हैं या फिर नौकरी छोड़ रहे हैं। भारत में किए गए एक सर्वे से पता चलता है कि 91 प्रतिशत पुलिसकर्मी दस घंटे से अधिक ड्यूटी देते हैं। ज्यादातर पुलिस वाले साप्ताहिक अवकाश के दिन भी काम पर बुला लिए जाते हैं। सेना, पैरामिलिट्री, पुलिस और असंगठित क्षेत्र में ज्यादा देर तक काम करने वाले लोग कई तरह की बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। ब्लड प्रेशर, डायबिटीज जैसी बीमारियां तो अब आम हो गई हैं। काम के दौरान ही हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक जैसी घटनाएं भी आम हो चली हैं। दिनोंदिन यह स्थिति और भयावह होती जा रही है। लोग काम के तनाव में मर रहे हैं, लेकिन उनके पास इससे बचने का कोई विकल्प भी नहीं है। बाजार में नौकरियां जो नहीं बची हैं। नौकरी छोड़ने के बाद दूसरी मिलने की कोई गारंटी भी तो नहीं है।
संजय मग्गू