Election Symbol : देश में लोकसभा चुनाव की तैयारियां चल रही हैं। सभी राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों के नाम लगभग तय कर लिए हैं। चुनाव आयोग के अधिकारी भी शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए तैयारियों को अंतिम रूप दे रहे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि किसी भी राजनीतिक दल को उनका सिंबल या चुनाव चिन्ह (Election Symbol) कैसे मिलता है? आज हम आपको बताएंगे कि किसी भी राजनीतिक पार्टी को चुनाव चिन्ह कैसे मिलता है।
कैसे मिलता है चुनाव चिन्ह?
भारत का चुनाव आयोग चुनाव चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के तहत राजनीतिक दलों को चुनाव चिन्ह (Election Symbol) आवंटित करता है। राष्ट्रीय स्तर पर ‘राष्ट्रीय पार्टी’ को और राज्य स्तर पर क्षेत्रीय दलों को एक चुनाव चिन्ह दिया जाता है। हालांकि, चुनाव चिन्ह (Election Symbol) पाने के लिए राजनीतिक दलों को कुछ नियम और शर्तें पूरी करनी होती हैं। बता दें कि चुनाव आयोग के पास 100 से ज्यादा चुनाव चिन्ह रिजर्व रहते हैं। किसी भी पार्टी को चुनाव चिन्ह (Election Symbol) आवंटित करने का अधिकार चुनाव आयोग के पास है। चुनाव चिन्ह (Election Symbol) दो प्रकार के होते हैं- आरक्षित यानी रिजर्व चुनाव चिन्ह और दूसरा मुक्त यानी स्वतंत्र चुनाव चिन्ह।
यह भी पढ़ें : होली के दौरान रंगीन नोट को कैसे चलाएं, यहां जानें RBI के नियम
रिजर्व चुनाव चिन्ह (Election Symbol) किसी राष्ट्रीय पार्टी या राज्य स्तर की पार्टी के लिए आरक्षित होते हैं और उस चुनाव चिन्ह पर पार्टी का एकाधिकार होता है। दूसरी ओर, आयोग के पास मुफ्त चुनाव चिह्नों की एक सूची भी है जो किसी छोटे दल या स्वतंत्र उम्मीदवार को आवंटित किए जाते हैं। यदि कोई पार्टी स्वयं अपना चुनाव चिन्ह चुनाव आयोग के समक्ष प्रस्तुत करती है तो यदि वह चिन्ह किसी पार्टी को आवंटित नहीं होता है तो आयोग वह चिन्ह उस पार्टी को आवंटित कर सकता है। यदि पार्टी किसी विशेष चिन्ह की मांग करती है तो आयोग उस पर विचार भी करता है।
किस तरह के चुनाव चिन्ह नहीं देता चुनाव आयोग?
यदि किसी राजनीतिक दल द्वारा मांगा गया विशेष चुनाव चिन्ह (Election Symbol) किसी अन्य दल को आवंटित नहीं किया गया है तो चुनाव आयोग उसे उसी दल को जारी कर सकता है। बता दें कि चुनाव चिन्हों को लेकर विवाद होते रहे हैं। इस कारण अब पशु-पक्षियों की फोटो वाले चुनाव चिन्ह नहीं दिए जाते। पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध किया था। दरअसल, प्रचार के दौरान पार्टियां अपने प्रतीक चिन्हों के साथ पशु-पक्षियों की परेड कराती थीं। पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने इसे क्रूरता बताया था। जिसके बाद चुनाव आयोग ने ऐसे प्रतीकों पर प्रतिबंध लगा दिया।
लेटेस्ट खबरों के लिए जुड़े रहें : https://deshrojana.com/